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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन (तृतीय चरण)
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का तृतीय चरण (1919 से 1947 ई.)तृतीय चरण 1919 ई. से 1947 ई. तक रहा। यह आन्दोलन देश की आज़ादी के लिए हो रहे संघर्ष का अंतिम चरण माना जाता है। इस काल में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वरज्य की प्राप्ति के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया।
नील की खेती1916 ई. में गाँधी जी ने अहमदाबाद के पास 'साबरमती आश्रम' की स्थापना की और अप्रैल, 1917 में बिहार में स्थित चम्पारन ज़िले में किसानों पर किये जा रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाया। दक्षिण अफ़्रीका में गाँधी जी के संघर्ष की कहानी सुनकर चम्पारन (बिहार) के अनेक किसानों, जिनमें रामचन्द्र शुक्ल प्रमुख थे, ने गाँधी जी को आमंत्रित किया। यहाँ नील के खेतों में कार्य करने वाले किसानों पर यूरोपीय निलहे बहुत अधिक अत्याचार कर रहे थे। उन्हें ज़मीन के कम से कम 3/20 भाग पर नील की खेती करना तथा निलहों द्वारा तय दामों पर उसे बेचना पड़ता था।
ख़िलाफ़त आन्दोलनख़िलाफ़त आन्दोलन' (1919-1922 ई.) का सूत्रपात भारतीय मुस्लिमों के एक बहुसंख्यक वर्ग ने राष्ट्रीय स्तर पर किया। गाँधी जी ने इस आन्दोलन को हिन्दू तथा मुस्लिम एकता के लिय उपयुक्त समझा और मुस्लिमों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की। महात्मा गाँधी ने 1919 ई. में 'अखिल भारतीय ख़िलाफ़त समिति' का अधिवेशन अपनी अध्यक्षता में किया। उनके कहने पर ही असहयोग एवं स्वदेशी की नीति को अपनाया गया। 1918-1919 ई. के मध्य भारत में 'ख़िलाफ़त आन्दोलन' मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली एवं अबुल कलाम आज़ाद के सहयोग से ज़ोर पकड़ता चला गया।
असहयोग आन्दोलनसितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में 'कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन' का आयोजन किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग व सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।
1 अगस्त, 1920 को आरम्भ किया। पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि स्थापित की गईं।
स्वराज्य पार्टीस्वराज्य पार्टी' की स्थापना 1 जनवरी, 1923 ई. में परिवर्तनवादियों का नेतृत्व करते हुए चितरंजन दास और पंडित मोतीलाल नेहरू ने विट्ठलभाई पटेल, मदन मोहन मालवीय और जयकर के साथ मिलकर इलाहाबाद में की। इस पार्टी की स्थापना कांग्रेस के ख़िलाफ़ की गई थी। इसके अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरू बनाये गए थे। स्वराज्य पार्टी के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे
स्वराज्यवादियों ने विधान मण्डलों के चुनाव लड़ने व विधानमण्डलों में पहुँचकर सरकार की आलोचना करने की रणनीति बनाई। स्वराज्यवादियों को विश्वास था कि वे शांतिपूर्ण उपायों से चुनाव में भाग लेकर अपने अधिक से अधिक सदस्यों को कौंसिल में भेजकर उस पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेंगे।
वरसाड आन्दोलनवरसाड आन्दोलन' (1923-1924 ई.) का संचालन सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में किया गया था। अंग्रेज़ ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाये गए 'डकैती कर' के विरोध में इस आन्दोलन का संचालन किया गया था।
वायकोम सत्याग्रह'वायकोम सत्याग्रह' (1924-1925 ई.) एक प्रकार का गाँधीवादी आन्दोलन था। इस आन्दोलन का नेतृत्व टी. के. माधवन, के. केलप्पन तथा के. पी. केशवमेनन ने किया। यह आन्दोलन त्रावणकोर के एक मन्दिर के पास वाली सड़क के उपयोग से सम्बन्धित था।
काकोरी काण्ड1924 ई. में 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशिन' की स्थापना हुई। इसके मुख्य कार्यकर्ता शचीन्द्रनाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल, योगेश चन्द्र चटर्जी, अशफ़ाकउल्ला ख़ाँ तथा रोशन सिंह आदि थे। उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त, 1925 ई. को काकोरी जाने वाली गाड़ी में लूट-पाट की। इस घटना को कालान्तर में 'काकोरी काण्ड' के नाम से जाना गया। इस काण्ड के मुख्य अभियुक्त राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला ख़ाँ, शचीन्द्र बख्शी, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आज़ाद एवं भगत सिंह आदि थे। इन नेताओं पर दो वर्ष तक मुकदमा चलने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकउल्ला ख़ाँ को फाँसी तथा बख्शी को आजीवन कारावास की सज़ा मिली। चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में सितम्बर, 1928 ई. को दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान में 'हिन्दुस्तान सोशिलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन' की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य भारत में एक 'समाजवादी गणतंत्र' की स्थापना करना था।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत30 अक्टूबर, 1928 ई. को लाहौर से 'साइमन कमीशन' के विरुद्ध प्रदर्शन करते समय पुलिस लाठी चार्ज में घायल हो जाने से लाला लाजपत राय की बाद में मृत्यु हो गयी। मृत्यु का बदला लेने के लिए भगत सिंह के नेतृत्व में पंजाब के क्रांतिकारियों ने 17 दिसम्बर, 1928 को लाहौर के तत्कालीन सहायक पुलिस कप्तान सॉण्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी।
पब्लिक सेफ्टी बिल' पास होने के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 ई. को बटुकेश्वर दत्त एवं भगत सिंह ने 'सेन्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली' में ख़ाली बेंचों पर बम फेंका। इस बम काण्ड का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था।, वे तो फ़्राँसीसी क्रातिकारियों के उस कथन को दोहरा भर रहे थे कि 'बहरों को कोई बात सुनाने के लिए अधिक कोलाहल की आवश्यकता पड़ती है।' भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चूंकि इस बम घटना के कारण फाँसी नहीं दी जा सकती थी, इसलिए उन्हें 'सॉण्डर्स हत्या काण्ड' एवं 'लाहौर षड्यंत्र' से जोड़ दिया गया। 23 मार्च, 1931 ई. को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया गया।
साइमन कमीशनसाइमन कमीशन' की नियुक्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में की थी। इस कमीशन में सात सदस्य थे, जो सभी ब्रिटेन की संसद के मनोनीत सदस्य थे। यही कारण था कि इसे 'श्वेत कमीशन' कहा गया। साइमन कमीशन की घोषणा 8 नवम्बर, 1927 ई. को की गई। कमीशन को इस बात की जाँच करनी थी कि क्या भारत इस लायक़ हो गया है कि यहाँ लोगों को संवैधानिक अधिकार दिये जाएँ। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया, जिस कारण इसका बहुत ही तीव्र विरोध हुआ।
नेहरू समितिनेहरू समिति' का गठन 28 फ़रवरी, 1928 ई. को को किया गया था। 'साइमन कमीशन' के बहिष्कार के बाद भारत सचिव लॉर्ड बर्कन हेड ने भारतीयों के समक्ष एक चुनौती रखी कि वे ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष रखें, जिसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त हो। कांग्रेस ने बर्कन हेड की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। पंडित मोतीलाल नेहरू को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। समिति के अन्य सदस्यों में, सर अली इमाम, एम.एस. अणे, तेजबहादुर सप्रू, मंगल सिंह, जी.आर. प्रधान, शोएब कुरेशी, सुभाषचन्द्र बोस, एन.एम. जोशी और जी.पी. प्रधान आदि थे।
जिन्ना के चौदह सूत्रजिन्ना के चौदह सूत्र' वाले मांग पत्र को 1929 ई. में प्रस्तुत किया गया था। मुहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे और वे 'नेहरू समिति' द्वारा प्रस्तुत की गई 'नेहरू रिपोर्ट' से असंतुष्ट थे। यही कारण था कि उन्होंने रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। 'नेहरू रिपोर्ट' से सिक्ख समुदाय भी असंतुष्ट था। मुस्लिम लीग ने नेहरू रिपोर्ट के विकल्प के रूप में मार्च, 1929 ई. में जिन्ना के चौदह सूत्र वाले मांग-पत्र को प्रस्तुत किया, इसे ही 'जिन्ना के चौदह सूत्र' कहा जाता है।
बारदोली सत्याग्रहबारदोली सत्याग्रह' 'भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन' का सबसे संगठित, व्यापक एवं सफल आन्दोलन 1922 ई. से चलाया। बाद में इसका नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुके में 1920 ई. में किसानों द्वारा 'लगान' न अदायगी का आन्दोलन चलाया गया।आन्दोलन के सफल होने पर वहाँ की महिलाओं ने पटेल को 'सरदार' की उपाधि प्रदान की।
गाँधी जी की ग्यारह सूत्री मांगगाँधी जी ने लॉर्ड इरविन एवं रैम्जे मैकडोनाल्ड के सम्मुख 31 जनवरी, 1930 ई. को 11 सूत्री प्रस्ताव रखा, जो इस प्रकार था-
- रुपये का पुनर्मूल्यन विनिमय दर में कमी एक शिलिंग 4 पेंस हो।
- मद्यनिषेध लागू किया जाये।
- नमक पर लगा कर समाप्त किया जाये।
- सैनिक व्यय में 50 प्रतिशत की कमी हो।
- अधिक वेतन पाने वाले सरकारी पदाधिकारियों की संख्या कम की जाये।
- विदेशी कपड़े पर विशेष आयात कर लगाया जाये।
- तटकर विधेयक लाया जाये।
- सभी राजनीतिक बन्दी छोड़ दिये जायें।
- गुप्तचर विभाग को समाप्त किया जाय।
- भारतीयों को आत्म-रक्षा के लिए हथियार रखने का अधिकार प्रदान किया जाय।
- भू-राजस्व 1/2 किया जाये।
महात्मा गाँधी ने कहा कि यदि 12 मार्च, 1930 ई. तक मांगे नहीं स्वीकार की गयीं तो वे नमक क़ानून का उल्लंघन करेंगे। गाँधी जी के उपर्युक्त मांग-पत्र पर सरकार ने कोई सकारात्मक रुख़ नहीं अपनाया। इसके फलस्वरूप 14 फ़रवरी, 1930 ई. को साबरमती में कांग्रेस की एक बैठक में गाँधी जी के नेतृत्व में 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' को चलाने का निश्चय किया गया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलनमहात्मा गांधी ने अपनी इस माँग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।
दांडी मार्चगाँधी जी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को दांडी यात्रा प्रारम्भ की गई। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए 'नमक क़ानून को तोड़ना'। गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा। गाँधी जी की दांडी यात्रा के बारे में सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा है- "महात्मा जी की दांडी मार्च की तुलना 'इल्बा' से लौटने पर नेपालियन के 'पेरिस मार्च' और राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए मुसोलिनी के 'रोम मार्च' से की जा सकती है।" चारों तरफ़ फैली इस असहयोग की नीति से अंग्रेज़ ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। 5 मई, 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया।
गाँधी-इरविन समझौतागाँधी-इरविन समझौता' 5 मार्च, 1931 ई. को हुआ था। महात्मा गाँधी और लॉर्ड इरविन के मध्य हुए इस समझौते को 'दिल्ली पैक्ट' के नाम से भी जाना जाता है। गाँधी जी ने इस समझौते को बहुत महत्त्व दिया था, जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसकी कड़ी आलोचना की। कांग्रेसी भी इस समझौते से पूरी तरह असंतुष्ट थे, क्योंकि गाँधी जी भारत के युवा क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी के फंदे से बचा नहीं पाए थे।
इस समझौते की शर्तें निम्नलिखित थीं-
- कांग्रेस व उसके कार्यकर्ताओं की जब्त की गई सम्पत्ति वापस की जाये।
- सरकार द्वारा सभी अध्यादेशों एवं अपूर्ण अभियागों के मामले को वापस लिया जाये।
- हिंसात्मक कार्यों में लिप्त अभियुक्तों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक क़ैदियों को मुक्त किया जाये।
- अफीम, शराब एवं विदेशी वस्त्र की दुकानों पर शांतिपूर्ण ढंग से धरने की अनुमति दी जाये।
- समुद्र के किनारे बसने वाले लोगों को नमक बनाने व उसे एकत्रित करने की छूट दी जाये।
गोलमेज सम्मेलन' 1930 से 1932 ई. के बीच लंदन में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड इरविन की 31 अगस्त, 1929 ई. की घोषणा के आधार पर हुआ था। इस सम्मेलन में लॉर्ड इरविन ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हो जाने के उपरान्त भारत के नये संविधान की रचना के लिए लंदन में 'गोलमेज सम्मेलन' का प्रस्ताव रखा। नवम्बर, 1931 ई. में लंदन में 'गोलमेज सम्मेलन' का आयोजन हुआ, जिसमें भारत और इंग्लैण्ड के सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता इंग्लैण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनल्ड ने की और तीन सम्मेलन आयोजित किये-
पूना समझौता' 24 सितम्बर, 1932 ई. को हुआ। यह समझौता राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की रोगशैया पर हुआ। ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड के 'साम्प्रदायिक निर्णय' के द्वारा न केवल मुस्लिमों को, बल्कि दलित जाति के हिन्दुओं को सवर्ण हिन्दुओं से अलग करने के लिए भी पृथक् प्रतिनिधित्व प्रदान कर दिया गया था।
पाकिस्तान की मांगमुस्लिम लीग' के 'लाहौर अधिवेशन' की अध्यक्षता करते हुए मुहम्मद अली जिन्ना ने 23 मार्च, 1940 ई. को भारत से अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की।
फ़ारवर्ड ब्लॉकफ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा अप्रैल, 1939 ई. में किया गया था। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के 'हरिपुरा अधिवेशन' में 19 फ़रवरी, 1938 ई. को सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस के 'त्रिपुरा अधिवेशन' में सुभाषचन्द्र बोस पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये थे, परन्तु गाँधी जी के विरोध के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया तथा अप्रैल, 1939 ई. मे 'फ़ारवर्ड ब्लॉक' नाम की एक नई पार्टी का गठन किया। उल्लेखनीय है कि सुभाषचन्द्र बोस के त्याग पत्र के पश्चात् डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
क्रिप्स प्रस्तावक्रिप्स प्रस्ताव' 30 मार्च, 1942 ई. को प्रस्तुत किया गया था। 1942 ई. में जापान की फ़ौजों के रंगून (वर्तमान यांगून) पर क़ब्ज़ा कर लेने से भारत के सीमांत क्षेत्रों पर सीधा ख़तरा पैदा हो गया था। अब ब्रिटेन ने युद्ध में भारत का सक्रिय सहयोग पाने के लिए युद्धकालीन मंत्रिमण्डल के एक सदस्य स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स को घोषणा के एक मसविदे के साथ भारत भेजा। क्रिप्स प्रस्तावों में भारत के विभाजन की रूपरेखा का संकेत मिल रहा था, अतः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंतरिम प्रबंध, रक्षा से सम्बंधित योजना एवं प्रान्तों के आत्मनिर्णय के अधिकार को अस्वीकार कर दिया।
भारत छोड़ो आन्दोलनभारत छोड़ो आन्दोलन' 9 अगस्त, 1942 ई. को सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आह्वान पर प्रारम्भ हुआ था। भारत की आज़ादी से सम्बन्धित इतिहास में दो पड़ाव सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नज़र आते हैं- प्रथम '1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम' और द्वितीय '1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन'। भारत को जल्द ही आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी द्वारा अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध यह एक बड़ा 'नागरिक अवज्ञा आन्दोलन' था। 'क्रिप्स मिशन' की असफलता के बाद गाँधी जी ने एक और बड़ा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय ले लिया था। इस आन्दोलन को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया।
कैबिनेट मिशनब्रिटेन में 26 जुलाई, 1945 ई. को क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में ब्रिटिश मंत्रिमण्डल ने सत्ता ग्रहण की। प्रधानमंत्री एटली ने 15 फ़रवरी, 1946 ई. को भारतीय संविधान सभा की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलन्त समस्याओं पर भारतीयों से विचार-विमर्श के लिए 'कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की।
माउन्टबेटन योजना24 मार्च, 1947 ई. को लॉर्ड माउन्ट बैटन भारत के वायसराय बनकर आये। पद ग्रहण करते ही उन्होंने 'कांग्रेस' एवं 'मुस्लिम लीग' के नेताओं से तात्कालिक समस्याओं पर व्यापक विचार विमर्श किया। 'मुस्लिम लीग' पाकिस्तान के अतिरिक्त किसी भी विकल्प पर सहमत नहीं हुई। माउन्ट बेटन ने कांग्रेस से देश के विभाजन रूपी कटु सत्य को स्वीकार करने का अनुरोध किया। कांग्रेस नेता भी परिस्थितियों के दबाव को महसूस कर इस सत्य को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गये।
माउन्टबेटन योजना' स्वीकार करने के बाद देश के विभाजन की तैयारी आरंभ हो गयी। बंगाल और पंजाब में ज़िलों के विभाजन तथा सीमा निर्धारण का कार्य एक कमीशन के अधीन सौंपा गया, जिसकी अध्यक्षता 'रेडक्लिफ़' ने की। इसीलिए भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन करने वाली रेखा को रैडक्लिफ़ रेखा कहा गया। विभाजन के बाद 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत तथा पाकिस्तान नाम के दो नये राष्ट्र अस्तित्व में आ गये। जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री एवं लॉर्ड माउन्ट बेटन प्रथम गवर्नर-जनरल बने तथा पाकिस्तान का गवर्नर-जनरल मुहम्मद अली जिन्ना एवं प्रधामंत्री लियाकत अली को बनाया गया।
Indian National Movement (Phase III)
Third Phase of Indian National Movement (1919 to 1947)
The third phase lasted from 1919 AD to 1947 AD. This movement is considered to be the last phase of the struggle for the independence of the country. During this period, under the leadership of Mahatma Gandhi, the Indian National Congress started a movement for the attainment of complete independence.
indigo cultivation
In 1916, Gandhiji established 'Sabarmati Ashram' near Ahmedabad and in April 1917, in Champaran district, Bihar, started a movement against the atrocities on farmers. Hearing the story of Gandhi's struggle in South Africa, many farmers of Champaran (Bihar), among whom Ramchandra Shukla was prominent, invited Gandhiji. Here the European farmers were committing a lot of atrocities on the farmers working in the indigo fields. They had to cultivate indigo on at least 3/20 of the land and sell it at the prices fixed by the indigo.
Khilafat Movement
The 'Khilafat Movement' (1919-1922 AD) was initiated by a majority section of Indian Muslims at the national level. Gandhiji considered this movement suitable for Hindu and Muslim unity and expressed his sympathy towards Muslims. Mahatma Gandhi held the session of 'All India Khilafat Committee' in 1919 AD under his chairmanship. At his behest, the policy of non-cooperation and indigenous was adopted. Between 1918-1919, the 'Khilafat Movement' in India went on gaining momentum with the help of Maulana Muhammad Ali, Shaukat Ali and Abul Kalam Azad.
non cooperation movement
In September 1920, to consider the program of the non-cooperation movement, a 'Session of the Congress General Committee' was organized in Calcutta (present day Kolkata). Lala Lajpat Rai presided over this session. In this session, for the first time, the Congress decided to take direct action against foreign rule in India, boycott the Legislative Councils and start non-cooperation and civil disobedience movement.
Launched on August 1, 1920. The non-cooperation movement got unprecedented success in western India, Bengal and northern India. Many educational institutions like Kashi Vidyapeeth, Bihar Vidyapeeth, Gujarat Vidyapeeth, Banaras Vidyapeeth, Tilak Maharashtra Vidyapeeth and Aligarh Muslim University were established for the study of the students.
Swarajya Party
'Swarajya Party' was founded on January 1, 1923, in Allahabad by Chittaranjan Das and Pandit Motilal Nehru, along with Vithalbhai Patel, Madan Mohan Malviya and Jayakar, leading the transformationists. This party was founded against the Congress. Its president was made Chittaranjan Das and secretary Motilal Nehru. Following were the main objectives of Swarajya Party
The Swarajists made a strategy to contest the elections to the legislatures and criticize the government by reaching the legislatures. The Swarajists believed that by peaceful means they would participate in the elections and establish their control over it by sending more and more of their members to the council.
varsad movementThe 'Versad Andolan' (1923–1924 AD) was conducted in Gujarat under the leadership of Sardar Vallabhbhai Patel. This movement was conducted in protest against the 'dacoity tax' imposed by the British British government.
Vaikom Satyagraha'Vaikom Satyagraha' (1924–1925 AD) was a type of Gandhian movement. This movement was led by T.K. Madhavan, K. Kelappan and K. P. Keshavamenon. This movement was related to the use of a road near a temple in Travancore.
Kakori scandalIn 1924 AD 'Hindustan Republican Association' was established. Its main workers were Shachindranath Sanyal, Ram Prasad Bismil, Yogesh Chandra Chatterjee, Ashfaqullah Khan and Roshan Singh etc. On August 9, 1925, the revolutionaries of Uttar Pradesh looted a car going to Kakori. This incident later came to be known as 'Kakori Kand'. The main accused in this case were Ram Prasad Bismil, Ashfaqullah Khan, Shachindra Bakshi, Rajendra Lahiri, Chandrashekhar Azad and Bhagat Singh etc. After two years of trial on these leaders, Ram Prasad Bismil and Ashfaqullah Khan were hanged and Bakshi was sentenced to life imprisonment. Under the leadership of Chandrashekhar Azad, 'Hindustan Socialist Republican Association' was established in Delhi's Ferozshah Kotla Maidan on September 1928, whose aim was to establish a 'socialist republic' in India.
Martyrdom of Bhagat Singh, Sukhdev and RajguruOn October 30, 1928, Lala Lajpat Rai later died due to being injured in a police lathi charge while demonstrating against the 'Simon Commission' from Lahore. To avenge the death, the revolutionaries of Punjab under the leadership of Bhagat Singh shot and killed Saunders, the then Assistant Police Captain of Lahore, on December 17, 1928.
On April 8, 1929, Batukeshwar Dutt and Bhagat Singh threw a bomb on empty benches in the 'Central Legislative Assembly' in protest against the passing of the 'Public Safety Bill'. The purpose of this bombing was not to kill anyone. They were just repeating the statement of the French revolutionaries that 'the deaf need more noise to tell something'. Since Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt could not be hanged due to this bomb incident, they were linked to 'Saunders murder case' and 'Lahore Conspiracy'. On March 23, 1931, Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru were hanged.
Simon CommissionThe 'Simon Commission' was appointed by the British Prime Minister under the leadership of Sir John Simon. The commission consisted of seven members, all of whom were nominated members of the British Parliament. This was the reason why it was called 'White Commission'. The Simon Commission was announced on November 8, 1927. The commission was to examine whether India was capable of giving constitutional rights to the people here. No Indian was included in this commission, due to which there was a lot of opposition to it.
Nehru CommitteeNehru Committee was formed on 28 February 1928 AD. After the boycott of the 'Simon Commission', India Secretary Lord Burkan Head put a challenge before the Indians to prepare such a constitution and place it before the British Parliament, which would get the support of all the parties. Congress accepted this challenge of Burkan Head. Pandit Motilal Nehru was made the chairman of this committee. Other members of the committee included Sir Ali Imam, M.S. Ane, Tej Bahadur Sapru, Mangal Singh, G.R. Pradhan, Shoaib Qureshi, Subhash Chandra Bose, N.M. Joshi and G.P. Principal etc.
Jinnah's Fourteen SutrasThe demand letter containing 'Fourteen Sutras of Jinnah' was presented in 1929 AD. Muhammad Ali Jinnah was the President of the Muslim League and he was dissatisfied with the 'Nehru Report' submitted by the 'Nehru Committee'. This was the reason why he rejected the report. The Sikh community was also dissatisfied with the 'Nehru Report'. The Muslim League presented Jinnah's Fourteen Points Charter in March, 1929 as an alternative to the Nehru Report, which is called 'Jinnah's Fourteen Sutras'.
Bardoli SatyagrahaBardoli Satyagraha' was the most organized, comprehensive and successful movement of 'Indian National Movement' from 1922 AD. Later it was led by Sardar Vallabhbhai Patel. In the Bardoli taluk of Surat (Gujarat) in 1920 AD, a movement of non-payment of 'Lagaan' was started by the farmers. On the success of the movement, the women there gave Patel the title of 'Sardar'.
Gandhi's eleven point demandGandhiji presented an 11-point proposal in front of Lord Irwin and Ramsay Macdonald on 31 January 1930, which was as follows-
- Revaluation of the rupee The reduction in the exchange rate is one shilling 4 pence.
- Prohibition should be enforced.
- Finish by putting on salt.
- There should be a 50 percent reduction in military expenditure.
- The number of government officials getting higher salaries should be reduced.
- Special import tax should be imposed on foreign cloth.
- The Coast Tax Bill should be introduced.
- All political prisoners should be released.
- The intelligence department should be abolished.
- Indians should be given the right to bear arms for self-defense.
- Land revenue should be made 1/2.
Mahatma Gandhi said that if the demands were not accepted by March 12, 1930, then he would violate the salt law. The government did not take any positive stand on the above demand letter of Gandhiji. As a result of this, it was decided to launch 'Civil Disobedience Movement' under the leadership of Gandhiji in a meeting of Congress in Sabarmati on 14 February 1930.
Civil disobedience movementMahatma Gandhi launched the Civil Disobedience Movement on 6 April 1930 to emphasize this demand. The purpose of which was to bow down to the British government by doing some specific types of illegal acts collectively.
Dandi MarchDandi Yatra was started by Gandhiji and his volunteers on March 12, 1930. Its main objective was to 'break the salt law' made by the British. Gandhiji along with his 78 volunteers, including Web Miller was one, 358 km from Sabarmati Ashram. Depart for Dandi located far away. After reaching Dandi on April 6, 1930, about 24 days later, he broke the salt law on the beach. Subhash Chandra Bose has written about Gandhiji's Dandi Yatra- "The Dandi March of Mahatmaji can be compared to the 'Paris March' of the Nepalese on his return from 'Ilba' and Mussolini's 'Rome March' to get political power. can." This policy of non-cooperation spread all around, the British British rule was badly angered. Gandhiji was arrested on May 5, 1930.
Gandhi-Irwin PactGandhi-Irwin Pact' was signed on March 5, 1931. This agreement between Mahatma Gandhi and Lord Irwin is also known as 'Delhi Pact'. Gandhiji gave great importance to this agreement, while Pandit Jawaharlal Nehru and Netaji Subhash Chandra Bose strongly criticized it. The Congressmen were also completely dissatisfied with this agreement, because Gandhiji could not save India's young revolutionaries Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev from the noose.
The terms of this agreement were as follows-
- The confiscated property of Congress and its workers should be returned.
- All ordinances and cases of incomplete prosecutions should be withdrawn by the government.
- All political prisoners should be freed except those accused in violent acts.
- Peaceful dharna should be allowed at opium, liquor and foreign cloth shops.
- People living on the shores of the sea should be allowed to make and collect salt.
The 'Round Table Conference' was held in London between 1930 and 1932. This conference was organized on the basis of the announcement of the then Viceroy Lord Irwin on August 31, 1929. In this conference, Lord Irwin proposed a 'Round Table Conference' in London for the creation of a new constitution of India after the report of the Simon Commission was published. In November 1931, a 'Round Table Conference' was organized in London, in which representatives of all political parties of India and England were invited. This conference was presided over by the then Prime Minister of England, Ramsay MacDonald and organized three conferences-
Poona Pact
Poona Pact' was done on 24 September 1932 AD. This agreement was done on the bed of the father of the nation Mahatma Gandhi. By the 'Communal Decision' of British Prime Minister Ramsay Macdonald, separate representation was provided not only to Muslims but also to separate Dalit caste Hindus from upper caste Hindus.
Pakistan's demand
Presiding over the 'Lahore session' of the Muslim League, Muhammad Ali Jinnah demanded a separate Muslim nation Pakistan from India on March 23, 1940.
forward block
A new party named 'Forward Bloc' was formed by Netaji Subhash Chandra Bose in April, 1939 AD. In the 'Haripura session' of the 'Indian National Congress', on February 19, 1938, Subhash Chandra Bose was elected president. In the 'Tripura session' of the Congress, Subhash Chandra Bose was re-elected the President of the Congress, but due to Gandhi's opposition, he resigned and in April, 1939, a new party named 'Forward Bloc' was formed. It is noteworthy that after the resignation of Subhash Chandra Bose, Dr. Rajendra Prasad was made the President of Congress.
cripps offer
The 'Cripps proposal' was presented on 30 March 1942 AD. The capture of Rangoon (present-day Yangon) by the Japanese forces in 1942 posed a direct threat to the frontier areas of India. Now Britain sent Stafford Cripps, a member of the wartime cabinet, to India with a draft of the declaration to get India's active cooperation in the war. The Cripps resolutions were indicating the contours of the partition of India, so the Indian National Congress rejected the provision of interim management, planning for defence, and the right of the provinces to self-determination.
Quit India Movement
Quit India Movement was started on 9th August, 1942 AD on the call of Father of the Nation Mahatma Gandhi all over India. In the history related to the independence of India, two phases appear to be the most important - the first 'Freedom War of 1857 AD' and the second 'Quit India Movement of 1942 AD'. It was a big 'civil disobedience movement' by Mahatma Gandhi against the British rule to get India's independence soon. After the failure of 'Cripps Mission', Gandhiji had decided to start another big movement. This movement was named 'Quit India Movement'.
cabinet mission
In Britain, on July 26, 1945, the British cabinet under the leadership of Clement Attlee assumed power. Prime Minister Attlee announced the establishment of the Constituent Assembly of India on February 15, 1946 and to send a 'Cabinet Mission' to India to discuss with the Indians on the then burning problems.
The Mountbatten Plan
On March 24, 1947, Lord Mount Batten came as the Viceroy of India. As soon as he took office, he discussed the immediate problems with the leaders of 'Congress' and 'Muslim League'. The 'Muslim League' did not agree on any option other than Pakistan. Mount Baton requested the Congress to accept the bitter truth of the partition of the country. The Congress leaders also felt the pressure of the circumstances and agreed to accept this truth.
After accepting the 'Mountbatten Plan', preparations for the partition of the country started. The division of districts in Bengal and Punjab and the determination of boundaries was entrusted under a commission, which was headed by 'Radcliffe'. That is why the dividing line between India and Pakistan was called Radcliffe Line. After the partition, on August 15, 1947, two new nations named India and Pakistan came into existence. Jawaharlal Nehru became the first Prime Minister of independent India and Lord Mount Batten became the first Governor-General and the Governor-General of Pakistan was Muhammad Ali Jinnah and the Prime Minister Liaquat Ali.