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Archive for July 2022

वैदिक सभ्यता

सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम 'वैदिक काल' अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं। चूँकि इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी-कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है। यहाँ आर्य शब्द का अर्थ- श्रेष्ठ, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट, स्वतंत्र आदि हैं। यह काल 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा।

वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं। वेद चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।

ऋग्वैदिक काल 1500-1000 ई.पू.

ऋग्वैदिक काल के अध्ययन के लिए दो प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं-

  • पुरातात्विक साक्ष्य
  • साहित्यिक साक्ष्य
  • पुरातात्विक साक्ष्य

    इसके अंतर्गत निम्नलिखित साक्ष्य उपलब्ध प्राप्त हुए हैं-

  • चित्रित धूसर मृदभाण्ड
  • खुदाई में हरियाणा के पास भगवान पुरा में मिले 13 कमरों वाला मकान तथा पंजाब में भी प्राप्त तीन ऐसे स्थल जिनका सम्बन्ध ऋग्वैदिक काल से जोड़ा जाता है।
  • बोगाज-कोई अभिलेख / मितल्पी अभिलेख (1400 ई.पू- इस लेख में हित्ती राजा शुब्विलुलियुम और मित्तान्नी राजा मत्तिउआजा के मध्य हुई संधि के साक्षी के रूप में वैदिक देवता इन्द्र, मित्र, वरुण और नासत्य का उल्लेख है।
  • साहित्यिक साक्ष्य

    ऋग्वेद में 10 मण्डल एवं 1028 मण्डल सूक्त है। पहला एवं दसवाँ मण्डल बाद में जोड़ा गया है जबकि दूसरा से 7वाँ मण्डल पुराना है।

    प्रशासनिक इकाई

    प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल थी। एक कुल में एक घर में एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल थे। एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था। ग्रामों का संगठन विश् कहलाता था और विशों का संगठन जन। कई जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे।ऋग्वैदिक भारत का राजनीतिक ढाँचा आरोही क्रम में- कुल > ग्राम > विशस > जन > राष्ट्र

    धर्म

    ऋग्वैदिक काल में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी। ऋग्वैदिक काल धर्म की॑ अन्य विशेषताएं • क्रत्या, निऋति, यातुधान, ससरपरी आदि के रूप मे अपकरी शक्तियो अर्थात, भूत-प्रेत, राछसों, पिशाच एवं अप्सराओ का जिक्र दिखाई पडता है।

    आर्थिक जीवन

    वैदिक आर्यो ने पशुपालन को ही अपना मुख्य व्यवसाय बनाया था। ऋग्वैदिक सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी। इस वेद में ‘गव्य एवं गव्यति शब्द चारागाह के लिए प्रयुक्त है। इस काल में गाय का प्रयोग मुद्रा के रूप मे भी होता था। अवि (भेड़), अजा (बकरी) का ऋग्वेद में अनेक बार ज़िक्र हुआ है। हाथी, बाघ, बतख,गिद्ध से आर्य लोग अपरिचित थे। धनी व्यक्ति को गोपत कहा गया था। राजा को गोपति कहा जाता था युद्ध के लिए गविष्ट, गेसू, गव्य ओर गम्य शब्द प्रचलित थे। समय की माप के लिए गोधुल शब्द का प्रयोग किया जाता था। दूरी का मान के लिए गवयतु।

    न्याय व्यवस्था

    न्याय व्यवस्था धर्म पर आधारित होती थी। राजा क़ानूनी सलाहकारों तथा पुरोहित की सहायता से न्याय करता था। चोरी, डकैती, राहजनी, आदि अनेक अपराधों का उल्लेख मिलता है। इसमें पशुओं की चोरी सबसे अधिक होती थी जिसे पणि लोग करते थे। पुत्र प्राप्ति हेतु देवताओं से कामना की जाती थी और परिवार संयुक्त होता था।

    उत्तर वैदिक काल

    उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.) भारतीय इतिहास में उस काल को, जिसमें सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद तथा ब्राह्मण ग्रंथों, आरण्यकों एवं उपनिषद की रचना हुई, को उत्तर वैदिक काल कहा जाता है।

    वैदिक साहित्य

  • वैदिक साहित्य में चार वेद एवं उनकी संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषदों एवं वेदांगों को शामिल किया जाता है।
  • वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
  • ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ है।
  • वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारण वेदों को "श्रुति" की संज्ञा दी गई है।
  • ऋग्वेद

  • ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से सम्बंधित रचनाओं का संग्रह है।
  • यह 10 मंडलों में विभक्त है। इसमे 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम माने जाते हैं। प्रथम एवं दशम मंडल बाद में जोड़े गए हैं। इसमें 1028 सूक्त हैं।
  • इसकी भाषा पद्यात्मक है।
  • ऋग्वेद में 33 देवो (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख मिलता है।
  • रप्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी गायत्री को संबोधित है, ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है।
  • ' असतो मा सद्गमय ' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
  • ऋग्वेद में मंत्र को कंठस्त करने में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- लोपामुद्रा, घोषा, शाची, पौलोमी एवं काक्षावृती आदि
  • इसके पुरोहित क नाम होत्री है।
  • यजुर्वेद

  • यजु का अर्थ होता है यज्ञ।
  • यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है।
  • इसमे मंत्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उद्देश्य से किया गया है।
  • इसमे मंत्रों के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है।
  • यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है।
  • यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद।
  • कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता। शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता।
  • यह 40 अध्याय में विभाजित है।
  • इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है।
  • सामवेद

    सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी।

  • इसमे 1810 छंद हैं जिनमें 75 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में उल्लेखित हैं।
  • सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।
  • सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
  • अथर्ववेद

  • इसमें प्राक्-ऐतिहासिक युग की मूलभूत मान्यताओं, परम्पराओं का चित्रण है। अथर्ववेद 20 अध्यायों में संगठित है। इसमें 731 सूक्त एवं 6000 के लगभग मंत्र हैं।
  • इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जानकारी दी गयी है।
  • अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं- शौनक और पिप्पलाद।
  • ब्राह्मण

    दिक मन्त्रों तथा संहिताओं को ब्रह्म कहा गया है | वही ब्रह्म का विस्तारितरुपको ब्राह्मण कहा गया है। पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय, शतपथ, पंचविश, तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण हैं। महर्षि याज्ञवल्क्यने मन्त्र सहित ब्राह्मण ग्रंथों की उपदेश आदित्यसे प्राप्त किया है।

    संहिताओं के अन्तर्गत कर्मकांड की जो विधि उपदिष्ट है ब्राह्मण मे उसी की सप्रमाण व्याख्या देखने को मिलता है। प्राचीन परम्परा मे आश्रमानुरुप वेदों का पाठ करने की विधि थी। अतः ब्रह्मचारी ऋचाओं ही पाठ करते थे ,गृहस्थ ब्राह्मणों का, वानप्रस्थ आरण्यकों और संन्यासी उपनिषदों का। गार्हस्थ्यधर्म का मननीय वेदभाग ही ब्राह्मण है। यह मुख्यतः गद्य शैली में उपदिष्ट है। ब्राह्मण ग्रंथों से हमें बिम्बिसार के पूर्व की घटना का ज्ञान प्राप्त होता है।सर्वाधिक परवर्ती ब्राह्मण गोपथ है।

    आरण्यक

    आरण्यक वेदों का वह भाग है जो गृहस्थाश्रम त्याग उपरान्त वानप्रस्थ लोग जंगल में पाठ किया करते थे | इसी कारण आरण्यक नामकरण किया गया।

  • इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय रहस्यवाद, प्रतीकवाद, यज्ञ और पुरोहित दर्शन है।
  • वर्तमान में सात अरण्यक उपलब्ध हैं।
  • सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक स्पष्ट और भिन्न रूप में उपलब्ध नहीं है।
  • उपनिषद

    उपनिषद प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है।

  • कुल उपनिषदों की संख्या 108 है।
  • मुख्य रूप से शास्वत आत्मा, ब्रह्म, आत्मा-परमात्मा के बीच सम्बन्ध तथा विश्व की उत्पत्ति से सम्बंधित रहस्यवादी सिधान्तों का विवरण दिया गया है।
  • "सत्यमेव जयते" मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
  • मैत्रायणी उपनिषद् में त्रिमूर्ति और चार्तु आश्रम सिद्धांत का उल्लेख है।
  • वेदांग

    युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं (शाखाओं) का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं। वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है। वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है, क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मानी जाती है। वेदांग सूत्र के रूप में हैं इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है। वेदांग की संख्या 6 है

  • शिक्षा- स्वर ज्ञान
  • कल्प- धार्मिक रीति एवं पद्धति
  • निरुक्त- शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र
  • व्याकरण- व्याकरण
  • छंद- छंद शास्त्र
  • ज्योतिष- खगोल विज्ञान
  • सूत्र साहित्य

    सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग है। उसे समझने में सहायक भी है।

    ब्रह्म सूत्र-भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीवेद व्यास ने वेदांत पर यह परमगूढ़ ग्रंथ लिखा है।

    कल्प सूत्र- ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण। वेदों का हस्त स्थानीय वेदांग।

    श्रोत सूत्र- महायज्ञ से सम्बंधित विस्तृत विधि-विधानों की व्याख्या। वेदांग कल्पसूत्र का पहला भाग।

    स्मार्तसूत्र षोडश संस्कारों का विधान करने वाला कल्प का दुसरा भाग

    शुल्बसूत्र- यज्ञ स्थल तथा अग्निवेदी के निर्माण तथा माप से सम्बंधित नियम इसमें हैं। इसमें भारतीय ज्यामिति का प्रारम्भिक रूप दिखाई देता है। कल्प का तीसरा भाग।

    धर्म सूत्र- इसमें सामाजिक धार्मिक कानून तथा आचार संहिता है। कल्प का चौथा भाग

    गृह्य सूत्र- परुवारिक संस्कारों, उत्सवों तथा वैयक्तिक यज्ञों से सम्बंधित विधि-विधानों की चर्चा है।



    Vedic Civilization


     After the decline of the Indus civilization, we get complete information about the new culture that came to light from the Vedas. That is why we know this period as 'Vedic period' or Vedic civilization. Since the originator of this culture was the Aryan people, hence the name Aryan civilization is also sometimes given. Here the meaning of the word Arya is superior, sublime, elite, noble, excellent, independent etc. This period is 1500 BC. to 600 BC remained in existence till


     Vedic civilization got its name because the Vedas are the main source of information about that period. There are four Vedas – Rigveda, Samveda, Atharvaveda and Yajurveda. Of these, the Rigveda was the first to be composed. There is Gayatri Mantra in Rigveda which is dedicated to Savita (Sun).


     Rigvedic period 1500-1000 BC


     There are two types of evidence available for the study of Rigvedic period-

    1. archaeological evidencel

    2.iterary evidence


    archaeological evidence

    Under this, the following evidence has been received:

    1. painted gray pot

    2. In excavation, a 13-room house was found at Bhagwan Pura near Haryana and three such sites found in Punjab, which are related to the Rigvedic period.

    3. Bogaz-koi inscription / Mitalpi inscription (1400 BC - This inscription mentions the Vedic gods Indra, Mitra, Varuna and Nasatya as a witness to the treaty between the Hittite king Shubviluliyum and the Mittani king Mattiuaja.

     literary evidence

    There are 10 Mandalas and 1028 Mandala Suktas in Rigveda. The first and tenth mandals were added later while the second to seventh mandals are older.

     administrative unit

    The smallest unit of administration was the total. A clan consisted of people living under one roof in a house. A village was made up of several clans. The organization of villages was called Vish and the organization of Vish was called Jan. Many peoples combined to form a nation. Political structure of Rigvedic India in ascending order- Kul > Village > Visas > Jana > Nation


     Religion


    In the Rigvedic period, only natural forces were worshipped and rituals were not prominent. Other features of Rigvedic period religion • In the form of kratya, niruti, yatudhan, sasarpari, etc., there is a mention of evil powers, ie, ghosts, demons, vampires and apsaras.


    economic life


     The Vedic Aryans made animal husbandry their main occupation. The Rigvedic civilization was a rural civilization. In this Veda the words 'Gavya and Gavyati' are used for pasture. Cow was also used as currency during this period. Avi (sheep), Aja (goat) are mentioned many times in Rigveda. The Aryans were unfamiliar with elephants, tigers, ducks, vultures. The rich man was called Gopat. The king was called Gopati, the words Gavishta, Gesu, Gavya and Gamya were prevalent for the war. The word Godhul was used to measure time. Gvaytu for the value of the distance.


     Judicial system


     The judicial system was based on religion. The king used to do justice with the help of legal advisors and priests. Many crimes like theft, dacoity, rahajani, etc. are mentioned. In this the theft of animals was the highest, which was done by the Pani people. Deities were prayed for to get a son and the family was united.


     post vedic period


     Later Vedic period (1000-600 BC) In Indian history, the period in which Samaveda, Yajurveda and Atharvaveda and Brahmanical texts, Aranyakas and Upanishads were composed, is called the later Vedic period.


     Vedic literature


    1. The four Vedas and their Samhitas, the Brahmanas, the Aranyakas, the Upanishads and the Vedangas are included in the Vedic literature.


    2. There are four Vedas – Rigveda, Samaveda, Yajurveda and Atharvaveda.


    3. Rigveda, Samveda, Yajurveda and Atharvaveda are the world's first authentic texts.


    4. The Vedas are called Apaurusheya. The Vedas have been given the name of "Shruti" because of the Guru being able to memorize the disciples orally.


     Rigveda


    1. Rigveda is a collection of compositions related to the praise of the gods.


    2. It is divided into 10 mandals. In this, the circles from 2 to 7 are considered to be the oldest. The first and tenth circles were added later. It has 1028 hymns.

     

    3. Its language is poetic.


    4. The Rigveda mentions 33 gods (substances with divine qualities).


    5. The famous Gayatri Mantra, which is addressed to the goddess Gayatri, related to the Sun, appears first in the Rigveda.


    6. The sentence 'Asato Ma Sadgamaya' is taken from Rigveda.


    7. In Rigveda, the names of women are also found in reciting the mantra, the main ones are- Lopamudra, Ghosha, Shachi, Poulomi and Kakshavriti etc.


    8. Its priest's name is Hotri.


    Yajurveda


     1.Yaju means sacrifice.


    2. The methods of sacrifice are described in Yajurveda Veda.


    3. In this, the compilation of mantras has been done for the purpose of reciting the bed at the time of ritual sacrifice.


    4. In this, along with mantras, there is also a description of religious rituals, which have been suggested to be performed with chanting.


    5. The language of Yajurveda is both poetic and prose.


    6. Yajurveda has two branches- Krishna Yajurveda and Shukla Yajurveda.


    7. There are four branches of Krishna Yajurveda - Maitrayani Samhita, Kathak Samhita, Kapinthal and Samhita. There are two branches of Shukla Yajurveda – Madhyandin and Kanva Samhita.


    8. It is divided into 40 chapters.


    9. In this book, for the first time, two state functions like Rajasuya and Vajpeya are mentioned.


    Samaveda

    The Samaveda was composed to make the mantras given in the Rigveda sungable.


    1. It has 1810 verses in which all except 75 are mentioned in Rigveda.

    2. The Samaveda is divided into three branches – Kauthum, Ranayaniya and Jaimaniya.

    3. Samaveda has the distinction of being the first musical book of India.


     atharvaveda


    1. It depicts the basic beliefs, traditions of the pre-historic era. Atharvaveda is organized into 20 chapters. It has 731 hymns and about 6000 mantras.

    2. In this information is given in the form of disease and its means of prevention.

    3. There are two branches of Atharvaveda – Saunaka and Pippalada.


    Brahmin


     Dik Mantras and Samhitas are called Brahma. That expanded form of Brahma is called Brahman. Aitareya, Shatapatha, Panchvish, Taitriya etc. are particularly important in the ancient Brahmins. Maharishi Yajnavalkya has received the teachings of Brahmin texts including mantras from Aditya.


     Under the samhitas, the method of rituals which is prescribed in the brahmana is clearly explained. In the ancient tradition, there was a method of reciting the Vedas according to the ashram. Therefore, the brahmacharis used to recite only the hymns, the householders of the Brahmins, the Vanprastha Aranyakas and the sanyasis of the Upanishads. The Veda part of the Garhasthya Dharma is considered to be Brahman. It is mainly presented in the prose genre. From the Brahmanical texts we get the knowledge of the event before Bimbisara. The most subsequent Brahmin is the Gopatha.


     aranyak


    Aranyaka is that part of the Vedas which the Vanprastha people used to recite in the forest after relinquishing their homestead. For this reason the name Aranyaka was given.


    1. Its main themes are mysticism, symbolism, sacrifice and priestly philosophy.

    2. There are currently seven Aranyakas available.

    3. No Aranyaka of Samaveda and Atharvaveda is available in a clear and distinct form.


    Upanishads


    The Upanishads are a collection of the oldest philosophical ideas.


    1.The total number of Upanishads is 108.

    2. Mainly, details of the mystic theories related to the eternal soul, Brahman, the relationship between the soul-Parmatma and the origin of the universe have been given.

    3. "Satyameva Jayate" is taken from Mundakopanishad.

    4. The Maitrayani Upanishad mentions the doctrine of Trimurti and Chartu Ashram.


     Vedang


    In the epoch, six disciplines (branches) were born for Vedic study, which are called 'Vedanga'. Vedanga literally means part of the Vedas, however, due to the masculine nature of this literature, it is counted separately from the Shruti literature. Vedanga is also called Smriti, because it is considered to be the creation of human beings. Vedanga is in the form of a sutra, an attempt has been made to keep more facts in less words. The number of Vedanga is 6


    1. education - vocal knowledge

    2. Kalpa - Religious customs and practices

    3. Nirukta - word etymology

    4. grammar - grammar

    5. verse - verse  scripture

    6. astrology - astronomy


     formula literature


     Sutra literature is a part of Vedic literature. It is also helpful in understanding it.


     Brahma Sutra - Lord Sriveda Vyasa, an incarnation of Lord Vishnu, has written this most esoteric text on Vedanta.

    Kalpa Sutra - Most important from historical point of view. Hand of the Vedas Local Vedang.

    Source Sutra - Explanation of detailed procedures related to Mahayagya. The first part of the Vedanga Kalpasutra.

    The second part of the Kalpa, which prescribes the Smarta Sutrashodash rites

    Sulbasutra - The rules related to the construction and measurement of the place of sacrifice and the fire vedi are in it. It shows the early form of Indian geometry. The third part of the cycle.

    Dharma Sutra- It contains socio-religious laws and code of conduct. fourth part of the cycle

    Grihya Sutras - There is a discussion of the rituals related to family rites, festivals and personal sacrifices.




    वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization) || क्या आप वैदिक सभ्यता के बारे में जानते हैं?

    Posted by : ROHINI KAMAL 0 Comments

    सिंधु घाटी सभ्यता

    सिंधु घाटी सभ्यता (अंग्रेज़ी:Indus Valley Civilization) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी।

    इस सभ्यता का उदय सिंधु नदी की घाटी में होने के कारण इसे सिंधु सभ्यता तथा इसके प्रथम उत्खनित एवं विकसित केन्द्र हड़प्पा के नाम पर हड़प्पा सभ्यता, आद्यैतिहासिक कालीन होने के कारण आद्यैतिहासिक भारतीय और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है।

    सभ्यता का खोज

    इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक 'सर जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के मोहनजोदाड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। 

    सभ्यता का विस्तार

    अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में 'जम्मू' के 'मांदा' से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने 'भगतराव' तक और पश्चिमी में 'मकरान' समुद्र तट पर 'सुत्कागेनडोर' से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल 'सुत्कागेनडोर', पूर्वी पुरास्थल 'आलमगीर', उत्तरी पुरास्थल 'मांडा' तथा दक्षिणी पुरास्थल 'दायमाबाद' है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सिन्धु सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर था। इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्र या 'सुमेरियन सभ्यता' से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी।

    मुख्य स्थल

  • हड़प्पा : हड़प्पा 6000-2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। मोहनजोदड़ो, मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में हड़प्पा में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है। इसकी खोज 1920 में की गई। वर्तमान में यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित है। सन् 1857 में लाहौर मुल्तान रेलमार्ग बनाने में हड़प्पा नगर की ईटों का इस्तेमाल किया गया जिससे इसे बहुत नुक़सान पहुँचा।
  • मोहनजोदाड़ो : मोहन जोदड़ो, जिसका कि अर्थ मुर्दो का टीला है 2600 ईसा पूर्व की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। हड़प्पा, मेहरगढ़ और लोथल की ही शृंखला में मोहन जोदड़ो में भी पुर्रात्तव उत्खनन किया गया। यहाँ मिस्र और मैसोपोटामिया जैसी ही प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले है। 
  • चन्हूदड़ों : मोहनजोदाड़ो के दक्षिण में स्थित चन्हूदड़ों नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण होता था। इस नगर की खोज सर्वप्रथम 1931 में 'एन.गोपाल मजूमदार' ने किया तथा 1943 ई. में 'मैके' द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया। सबसे निचले स्तर से 'सैंधव संस्कृति' के साक्ष्य मिलते हैं।
  • लोथल : यह गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में 'भोगावा नदी' के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। खुदाई 1954-55 ई. में 'रंगनाथ राव' के नेतृत्व में की गई।
  • रोपड़ : पंजाब प्रदेश के 'रोपड़ ज़िले' में सतलुज नदी के बांए तट पर स्थित है। यहाँ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम उत्खनन किया गया था। इसका आधुनिक नाम 'रूप नगर' था। 1950 में इसकी खोज 'बी.बी.लाल' ने की थी।
  • कालीबंगा : यह स्थल राजस्थान के गंगानगर ज़िले में घग्घर नदी के बाएं तट पर स्थित है। खुदाई 1953 में 'बी.बी. लाल' एवं 'बी. के. थापड़' द्वारा करायी गयी। यहाँ पर प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
  • सूरकोटदा : यह स्थल गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इसकी खोज 1964 में 'जगपति जोशी' ने की थी इस स्थल से 'सिंधु सभ्यता के पतन' के अवशेष परिलक्षित होते हैं।
  • आलमगीरपुर (मेरठ) : पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में यमुना की सहायक हिण्डन नदी पर स्थित इस पुरास्थल की खोज 1958 में 'यज्ञ दत्त शर्मा' द्वारा की गयी।
  • रंगपुर (गुजरात) : गुजरात के काठियावाड़ प्राय:द्वीप में भादर नदी के समीप स्थित इस स्थल की खुदाई 1953-54 में 'ए. रंगनाथ राव' द्वारा की गई। यहाँ पर पूर्व हडप्पा कालीन सस्कृति के अवशेष मिले हैं। यहाँ मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं। यहाँ उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिलते हैं।
  • बणावली (हरियाणा) : हरियाणा के हिसार ज़िले में स्थित दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के अवषेश मिले हैं। हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पाकालीन इस स्थल की खुदाई 1973-74 ई. में 'रवीन्द्र सिंह विष्ट' के नेतृत्व में की गयी। 
    अलीमुराद (सिंध प्रांत) : सिंध प्रांत में स्थित इस नगर से कुआँ, मिट्टी के बर्तन, कार्निलियन के मनके एवं पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त इस स्थल से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है। 
    सुत्कागेनडोर (दक्षिण बलूचिस्तान) : यह स्थल दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे स्थित है। 

    हड़प्पाकालीन सभ्यता से सम्बन्धित कुछ नवीन क्षेत्र

    खर्वी (अहमदाबाद) कुनुतासी (गुजरात) बालाकोट (बलूचिस्तान) अल्लाहदीनों (अरब महासागर) भगवानपुरा (हरियाणा) देसलपुर (गुजरात) रोजदी (गुजरात)

    नगर निर्माण योजना

    इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी। नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।

    नगर निर्माण एवं भवन निर्माण :- सभी प्रमुख नगर जिनमे हड़प्पा मोहन जोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल तथा कालीबंगा सभी प्रमुख नगर नदियों के तट पर बसे थे इन नगरों में सुरक्षा के लिये चारो ओर परकोटा दीवार का निर्माण कराया जाता था । प्रत्येक नगर में चौड़ी एवं लम्बी सड़के थी, चौड़ी सड़के एक दूसरें शहरों को जोड़ती थी । सिन्धु घाटी सभ्यता में कच्चे पक्के, छोटे बड़े सभी प्रकार के भवनों के अवशेष मिले है । भवन निर्माण में सिन्धु सभ्यता के लोग दक्ष थे । इसकी जानकारी प्राप्त भवनावशेषों से होती है । इनके द्वारा निर्मित मकानो में सुख-सुविधा की पूर्ण व्यवस्था थी । भवनों का निर्माण भी सुनियोजित ढंग से किया जाता था । प्रकाश व्यवस्था के लिये रोशनदान एवं खिड़कियां भी बनार्इ जाती थी । रसोर्इ घर, स्नानगृह, आंगन एवं भवन कर्इ मंजिल के होते थे । दीवार र्इटो से बनार्इ जाती थी । भवनो, घरों में कुंये भी बनाये जाते थे । लोथल में र्इटो से बना एक हौज मिला है ।

    विशाल स्नानागार :- मोहन जादे ड़ो में उत्खनन से एक विशाल स्नानागार मिला जो अत्यन्त भव्य है । स्नानकुण्ड से बाहर जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी । समय-समय पर जलाशय की सफार्इ की जाती थी । स्नानागार के निर्माण के लिये उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग किया गया था, इस कारण आज भी 5000 वर्ष बीत जाने के बाद उसका अस्तित्व विद्यमान है ।

    अन्न भण्डार :- हड़प्पा नगर के उत्खन में यहां के किले के राजमार्ग में दानेो ओर 6-6 की पक्तियॉं वाले अन्न भण्डार के अवशेष मिले है, अन्न भण्डार की लम्बार्इ 18 मीटर व चौड़ार्इ 7 मीटर थी । इसका मुख्य द्वार नदी की ओर खुलता था, ऐसा लगता था कि जलमार्ग से अन्न लाकर यहां एकत्रित किया जाता था । सम्भवत: उस समय इस प्रकार के विशाल अन्न भण्डार ही राजकीय कोषागार के मुख्य रूप थे ।

    जल निकास प्रणाली :- सिन्धु घाटी की जल निकास की याजे ना अत्यधिक उच्च कोटि की थी । नगर में नालियों का जाल बिछा हुआ था सड़क और गलियों के दोनो ओर र्इटो की पक्की नालियॉ बनी हुर्इ थी । मकानों की नालियॉं सड़को या गलियों की नालियों से मिल जाती थी । नालियों को र्इटो और पत्थरों से ढकने की भी व्यवस्था थी । इन्हें साफ करने स्थान-स्थान पर गड्ढ़े या नलकूप बने हुये थे । इस मलकूपों में कूडा करकट जमा हो जाता था और नालियों का प्रवाह अवरूद्ध नहीं होता था । नालियों के मोडो और संगम पर र्इटो का प्रयोग होता था । 

    सड़कें :- सिंधु सभ्यता में सड़कों का जाल नगर को कई भागों में विभाजित करता था। सड़कें पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। मोहनजोदाड़ो में पाये गये मुख्य मार्गो की चौड़ाई लगभग 9.15 मीटर एवं गलियां क़रीब 3 मीटर चौड़ी होती थी। सड़को का निर्माण मिट्टी से किया गया था। सड़को के दोनो ओर नालियों का निर्माण पक्की ईटों द्वारा किया गया था और इन नालियों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर ‘मानुस मोखे‘बनाये गये थे। नलियों के जल निकास का इतना उत्तम प्रबन्घ किसी अन्य समकालीन सभ्यता में नहीं मिलता ।

    सामाजिक जीवन -

    हड़प्पा जैसी विकसित सभ्यता एक मजबतू कृषि ढांचे पर ही पनप सकती थी । हड़प्पा के किसान नगर की दीवारों के समीप नदी के पास मैदानों में रहते थे । यह शिल्पकारों, व्यापारियों और अन्य शहर में रहने वालों के लिए अतिरिक्त अन्न पैदा करते थे । कृषि के अलावा ये लोग बहुत सी अन्य कलाओं में भी विशेष रूप से निपुण थे । घरों के आकारों में भिन्नता को देखते हुए कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा समाज वर्गो में बंटा था ।

    भोजन :- हड़प्पा संस्कृति के लागे भोजन के रूप में गेहॅूं, चावल, तिल, मटर आदि का उपयोग करते थे । लोग मांसाहारी भी थे । विभिन्न जानवरों का शिकार कर रखते थे । फलो का प्रयोग भी करते थे । खुदार्इ से बहुत सारे ऐसे बर्तन मिले है, जिनसे आकार एवं प्रकार से खाद्य व पेय सामग्रियों की विविधता का पता लगता है । पीसने के लिये चक्की का प्रयोग करते थे ।

    वस्त्र :- सिन्धु घाटी के निवासियों की वेष भूषा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि महिलायें घाघरा साड़ी एवं पुरूष धोती एवं पगड़ी का प्रयोग करते थे । स्वयं हाथ से धागा बुनकर वस्त्र बनाते थे।

    आभूषण एवं सौदर्य प्र्साधन :- स्त्री, पुरूष दोनो आभूषण धारण करते थे । आभषूणों में हार कंगन, अंगूठी, कर्णफूल, भुजबन्ध, हंसली, कडे, करधनी, पायजेब आदि विशेष उल्लेखनीय है । कर्इ लड़ी वाली करधनी और हार भी मिले है । आभूषण सोने, चॉदी, पीतल, तांबा, हाथी दांत, हड्डियों और पक्की मिट्टी के बने होते है । अमीर बहुमूल्य धातुओं और जवाहरातों के आभूषण धारण करते थे । स्त्री पुरूष दोनो श्रृंगार प्रेमी थे धातु एवं हाथी दांत की कंघी एवं आइना का प्रयोग करते थे । केश विन्यास उत्तम प्रकार का था खुदार्इ से काजल लगाने की एवं होठों को रंगने के अनेक छोटे-छोटे पात्र मिले हैं ।

    मनोरंजन :- सिन्धु सभ्यता के लोग मनोरजं न के लिये विविध कलाओं का प्रयोग करते थे जानवरों की दौड़ शतरंज खेलते थे, नृत्यगंना की मूर्ति हमें हड़प्पा संस्कृति में नाच गाने के प्रचलन को बताती है । मिट्टी एवं पत्थर के पांसे मिले है ।

    प्रौद्योगिकी ज्ञान :- सिन्धु सभ्यता के लोगों का भवन निर्माण, विशाल अन्न भण्डार जल निकासी व्यवस्था, सड़क व्यवस्था देखकर उनकी तकनीकी ज्ञान बहुत रहा होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है, वे मिश्रित धातु बनाना जानते थे, उनकी मूर्तियॉं एवं आभूषण बहुत खुबसूरत थे।

    मृतक कर्म :- इस काल में भी शवों के जमीन में दफनाया जाता था । शवों के साथ पुरा पाषाण काल के समान भोजन, हथियार, गृह-पात्र तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ भी साथ में रख दी जाती थी । मृतकों की कब्रों के ऊपर बड़े-बड़े पत्थर भी रख दिये जाते थे, जिनको रखने का मुख्य उद्देश्य मृतकों को सम्मान देना था । कुछ स्थलों पर शवो को जलाने की प्रथा का भी प्रचलन हो गया था । जब शव जल जाता था तो उसकी राख को मिट्टी के बने घड़ों में रखकर सम्मान के साथ जमीन में गाड़ दिया जाता था ।

    चिकित्सा विज्ञान :- सिन्धु सभ्यता के निवासी विभिन्न औषधियों से परिचित थे, तथा हिरण, बारहसिंघे के सीगों, नीम की पत्तीयों एवे शिलाजीत का औषधियों की तरह प्रयोग करते थे, उल्लेखनीय है कि सिन्धु सभ्यता में खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के उदाहरण भी काली, बंगा एवं लोथल से प्राप्त होते है । समुद्र फेन (झाग) भी औषधि के रूप में प्रयोग में लाया जाता था।

    आर्थिक जीवन 

    कृषि एवं पशुपालन :- आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत उपजाऊ था। सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी। गाँव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी। यहां के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल के महीने में गेहूँ और जौ की फ़सल काट लेते थे। यहाँ कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगां की प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के जो कूँट (हलरेखा) मिले हैं उनसे आभास होता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते थे।

    सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।

    व्यापार :- यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील (मृन्मुद्रा), एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं। वे चक्के से परिचित थे और संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है - दलमुन और माकन। दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है।

    उद्योग-धंधे :- यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत अवस्था में था। उसका विदेशों में भी निर्यात होता था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था,अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है। अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।

    कला का विकास

    मूर्तिकला या प्रतिमाएं :- हडप़्पा सभ्यता के लोग धातु की सुन्दर प्रतिमाएं बनाते थे । इनका सबसे सुन्दर नमूना कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति है । खुदार्इ में सेलखड़ी की बनी एक दाढ़ी वाले पुरूष की एक अर्ध प्रतिमा प्राप्त हुर्इ है । उस के बांये कन्धे से दांये हाथ के नीचे तक एक अलंकृत दुशाला और माथे पर सरबन्ध है । पत्थर की बनी हुर्इ दो पुरूषों की प्रतिमाए हड़प्पा की लघु मूर्तिकला का उदाहरण है ।

    चित्रकला :- अनेक बर्तनों तथा मोहरो पर बने चित्रों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी के लोग चित्रकला में अत्यधिक प्रवीण थे । मुहरो पर सांडो और भैंसो की सर्वाधिक कलापूर्ण ढंग से चित्रकारी की गर्इ है । वृक्षों के भी चित्र बनाये गये है ।

    मुद्रा कला :- हड़प्पा की खुदार्इ में विभिन्न प्रकार की मुद्रायें मिली है ये मुद्रायें वर्गाकार आकृति की है जिन पर एक ओर पशुओं के चित्र बने है तथा दूसरी ओर लेख है । ये हांथी दांत व मिट्टी के लगभग 3600 मुहरे प्राप्त हुर्इ है ।

    धातु कला :- सिन्धु सभ्यता की कलाओं में धातु कला जिसमें विशेष स्वर्ण कला का उल्लेख मिलता है । यहां के सोनारों द्वारा गलार्इ, ढलार्इ, नक्कासी जोड़ने आदि का कार्य किया जाता था । सिन्धु काल की कलाकृतियां इतनी विलक्षण और मनोहर है कि ऐसी कारीगरी पर आज का सुनार भी गर्व कर सकता है ।

    पात्र निर्माण कला :- खुदार्इ में अनेक ताम्र एवं मिट्टी के पात्र मिले है जो बहुत सुन्दर एवं उच्च कोटि के है यह वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार में मिले है । ये पानी भरने एवं अनाज रखने के काम आते थे ।

    ताम्र्रपात्र निर्माण कला :- खुदार्इ में अनेक ताबें के पात्र मिले है ये वर्गाकार, आयताकार में है जिसमें चित्रकारी है ।

    वस्त्र निर्माण कला :- सिन्धु सभ्यता की खुदार्इ की गइर् तो तकलियॉ प्राप्त हुर्इ है जिनसे सूत कातने के काम में भी यहां के निवासी निपुण थे ।

    नृत्य तथा संगीत कला :- इस बात के भी प्रमाण हैं कि सिन्धुवासी नृत्य तथा संगीत से परिचित थे । पहले हम कांसे की बनी एक नर्तकी की मूर्ति का उल्लेख कर आये है । इससे स्पष्ट है कि सिन्धु प्रदेश में नृत्य कला का प्रचार था । इस मूर्ति की भावभंगिमा वैसी ही हृदयग्राही है जैसी कि ऐतिहासिक युग की मूर्तियों में देखने को मिलती है । बर्तनों पर कुछ ऐसे चित्र मिले हैं जो ढोल और तबले से मिलते-जुलते हैं । अनुमान है कि सिन्धुवासी वाद्ययन्त्र भी बनाना जानते थे ।

    लिपि या लेखन कला :- मेसोपोटामिया के निवासियों की तरह हड़प्पा वासियों ने भी लेखन कला का विकास किया । यद्यपि इस लिपि के पहले नमूने 1853 में प्राप्त हुये थे पर अभी तक विद्वान इसका अर्थ नहीं निकाल पाए हैं । कुछ विद्वानों ने तो इसे पढ़ने के लिए कम्प्यूटर का भी उपयोग किया पर वह भी असफल हैं । इस लिपि का द्रविड़, संस्कृत या सुमेर की भाषाओं से संबंध स्थापित करने के प्रयत्नों का भी कोर्इ संतोषजनक परिणाम नहीं निकला है । हड़प्पा की लिपि को चित्र लिपि माना जाता है । इस लिपि में हर अक्षर एक चित्र के रूप में किसी ध्वनी, विचार या वस्तु का प्रतीक होता है । लगभग 400 ऐसे चित्रलेख देखने में आये हैं। यह लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है अत: हम हड़प्पा संस्कृति के साहित्य, विचारों या शासन व्यवस्था के विषय में अधिक नहीं कह सकते हैं । पढ़ना व लिखना शायद एक वर्ग तक सीमित था ।

    धार्मिक जीवन

    हड़प्पा के लोग एक ईश्वरीय शक्ति में विश्वास करते थे

    शिव की पूजा :- मोहनजोदड़ों से मैके को एक मुहर प्राप्त हुई जिस पर अंकित देवता को मार्शल ने शिव का आदि रुप माना आज भी हमारे धर्म में शिव की सर्वाधिक महत्ता है। मातृ देवी की पूजा:- सैन्धव संस्कृति से सर्वाधिक संख्या में नारी मृण्य मूर्तियां मिलने से मातृ देवी की पूजा का पता चलता है। यहाँ के लोग मातृ देवी की पूजा पृथ्वी की उर्वरा शक्ति के रूप में करते थे (हड़प्पा से प्राप्त मुहर के आधार

    मूर्ति पूजा :- हड़प्पा संस्कृति के समय से मूर्ति पूजा प्रारम्भ हो गई हड़प्पा से कुछ लिंग आकृतियां प्राप्त हुई है इसी प्रकार कुछ दक्षिण की मूर्तियों में धुयें के निशान बने हुए हैं जिसके आधार पर यहाँ मूर्ति पूजा का अनुमान लगाया जाता है। हड़प्पा काल के बाद उत्तर वैदिक युग में मूर्ति पूजा के प्रारम्भ का संकेत मिलता है हलाँकि मूर्ति पूजा गुप्त काल से प्रचलित हुई जब पहली बार मन्दिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।

    जल पूजा :- मोहनजोदड़ों से प्राप्त स्नानागार के आधार पर।

    सूर्य पूजा :- मोहनजोदड़ों से प्राप्त स्वास्तिक प्रतीकों के आधार पर। स्वास्तिक प्रतीक का सम्बन्ध सूर्य पूजा से लगाया जाता है।

    नाग पूजा: मुहरों पर नागों के अंकन के आधार पर।

    वृक्ष पूजा:- मुहरों पर कई तरह के वृक्षों जैसे-पीपल, केला, नीम आदि का अंकन मिलता है। इससे इनके धार्मिक महत्ता का पता चलता है।



    Indus Valley Civilization


    The Indus Valley Civilization was one of the major civilizations of the ancient river valley civilizations of the world.

    Due to the rise of this civilization in the valley of the Indus river, it is also known as the Indus civilization and Harappan civilization after its first excavated and developed center Harappa, being the prehistoric period, the Indian and Indus-Saraswati civilization.

    discovery of civilization

    The credit of discovering this unknown civilization goes to 'Rai Bahadur Dayaram Sahni'. He got this place excavated in 1921 under the direction of 'Sir John Marshall', Director General of the Archaeological Survey Department. About a year later, in 1922, under the leadership of 'Shri Rakhal Das Banerjee', another place was discovered during the excavation of a Buddhist stupa located in Mohenjodaro of 'Larkana' district of Sindh province of Pakistan.

    expansion of civilization

    So far, the remains of this civilization have been found in parts of Punjab, Sindh, Balochistan, Gujarat, Rajasthan, Haryana, western Uttar Pradesh, Jammu and Kashmir in Pakistan and India.  The spread of this civilization is from 'Manda' of 'Jammu' in the north to 'Bhagatrao' at the mouth of Narmada in the south and 'Sutkagendor' on the 'Makran' beach in the west to Meerut in western Uttar Pradesh in the east.  The westernmost site of this civilization is 'Sutkagendor', the eastern site 'Alamgir', the northern site 'Manda' and the southern site 'Daimabad'.  This almost triangular part is spread over a total area of ​​about 12,99,600 square kilometers.  The extent of the Indus civilization was 1600 km from east to west and 1400 km from north to south.  Thus the Indus civilization spread over a much wider area than contemporary Egypt or the 'Sumerian Civilization'.

    main point

    Harappa: Harappa was a well-organized urban civilization of 6000-2600 BC.  In the same series of Mohenjodaro, Mehrgarh and Lothal, archaeological excavations were also done in Harappa.  The remains of ancient civilizations like Egypt and Mesopotamia have been found here.  It was discovered in 1920.  Presently it is located in the Punjab province of Pakistan.  In 1857, the bricks of Harappa city were used to build the Lahore-Multan Railway, which caused great damage to it.

    Mohenjodaro: Mohenjodaro, which means mound of the dead, was a well-organized urban civilization dating back to 2600 BC.  In the same series as Harappa, Mehrgarh and Lothal, archaeological excavations were also done at Mohenjodaro.  The remains of ancient civilizations like Egypt and Mesopotamia have been found here.

    Chanhudar: A place called Chanhudar, located in the south of Mohenjodaro, was used to manufacture seals and dolls as well as many things from bones. This city was first discovered by 'N. Gopal Majumdar' in 1931 and excavated here by 'McKay' in 1943 AD. Evidence of 'Sindhav culture' is found from the lowest level.

     Lothal : It is situated in Ahmedabad district of Gujarat near a village named 'Sargwala' on the bank of 'Bhogava river'. Excavation was done in 1954-55 AD under the leadership of 'Rangnath Rao'.

     Ropar : It is situated on the left bank of river Sutlej in 'Ropar district' of Punjab state. The first excavation was done here after independence. Its modern name was 'Roop Nagar'. It was discovered by 'BB Lal' in 1950.

     Kalibanga : This place is situated on the left bank of river Ghaggar in Ganganagar district of Rajasthan. Excavated in 1953 'B.B. Red' and 'B. Of. Thappad'. The remains of Pre-Harappan and Harappan culture have been found here.

     Surkotada : This place is located in Kutch district of Gujarat. It was discovered by 'Jagpati Joshi' in 1964, from this site the remains of 'decline of Indus Civilization' are reflected.

    Alamgirpur (Meerut): Located on the Hindon River, a tributary of the Yamuna in Meerut district of western Uttar Pradesh, this site was discovered by Yagya Dutt Sharma in 1958.

     Rangpur (Gujarat) : The excavation of this site located near the Bhadar river in the Kathiawar peninsula of Gujarat was done in 1953-54 by 'A. Ranganatha Rao'. Remnants of pre-Harappan culture have been found here. The raw brick forts, drains, pottery, weights, stone panels etc. found here are important. Heaps of rice bran found here. Evidence of the later Harappan culture is found here.

     Banawali (Haryana): Remains of two cultural stages located in Hisar district of Haryana have been found. Pre-Harappan and Harappan period This site was excavated in 1973-74 AD under the leadership of 'Rabindra Singh Vishta'.

    Alimurad (Sindh Province): The remains of a huge fort made of wells, pottery, carnelian beads and stones have been found from this city located in Sindh province. Apart from this, small terracotta of bull and bronze ax have also been found from this site.

     Sutkagendor (South Balochistan): This site is located in South Balochistan on the banks of the Dasht River.

    Some new areas related to Harappan civilization

    Kharvi (Ahmedabad), Kunutasi (Gujarat) Balakot (Balochistan) Allahdin (Arab Ocean) Bhagwanpura (Haryana) Desalpur (Gujarat) Rojdi (Gujarat)

     town building plan

    The most special thing about this civilization was the developed city building plan here. There was symmetry in the city construction of important sites of this civilization. The special thing about the buildings of the cities was that they were configured like a net.

     City construction and building construction :- All the major cities in which Harappa, Mohenjodaro, Chanhudaro, Lothal and Kalibanga were situated on the banks of all the major rivers, in these cities, a wall of wall was built around it for security. Each city had wide and long roads, wide roads connecting each other cities. In the Indus Valley Civilization, the remains of all types of buildings, small and large, have been found. The people of Indus civilization were skilled in building construction. This information is obtained from the remains of the building. There was complete arrangement of amenities in the houses built by them. The construction of buildings was also done in a planned manner. Skylights and windows were also made for lighting. The kitchen, bathroom, courtyard and building were of several floors. The wall was made of bricks. Wells were also made in buildings and houses. A cistern made of Eto has been found in Lothal.

    Huge Bathroom :- The excavation at Mohan Jade Do found a huge bathroom which is very grand. There was a good drainage system outside the bathing pool. The reservoir was cleaned from time to time. High quality materials were used for the construction of the bathhouse, due to which its existence exists even after 5000 years have passed.

     Grain Store: - In the excavation of Harappa city, the remains of grain store with 6-6 rows have been found in the highway of the fort here, the length of the granary was 18 meters and the width was 7 meters. Its main gate opened towards the river, it seemed that food was brought here from the waterway and collected here. Probably at that time such huge granaries were the main form of the state treasury.

     Drainage System :- The drainage system of the Indus Valley was of very high quality. There was a network of drains in the city, both sides of the road and alleys were made of concrete drains. The drains of the houses met with the drains of the streets or streets. There was also a system to cover the drains with bricks and stones. To clean them, pits or tube wells were made in place. Garbage used to accumulate in these sewage wells and the flow of drains was not blocked. Eto was used at the bends and confluences of the drains.

    Roads :- In the Indus Civilization, a network of roads used to divide the city into many parts. Roads running from east to west and north to south intersected each other at right angles. The width of the main roads found in Mohenjodaro was about 9.15 meters and the streets were about 3 meters wide. Roads were made of mud. The drains on both the sides of the roads were constructed with pucca bricks and 'Manus Mokhe' were made at some distance in these drains. Such excellent management of drainage of tubes is not found in any other contemporary civilization.

     social life -

     A developed civilization like the Harappa could flourish only on a strong agrarian structure. The Harappan farmers lived in the plains near the river, near the city walls. It produced additional food for the craftsmen, merchants and other city dwellers. Apart from agriculture, these people were also particularly adept in many other arts. In view of the difference in the size of the houses, some scholars are of the opinion that the Harappan society was divided into classes.

     Food :- The people of Harappan culture used wheat, rice, sesame, peas etc. as food. People were also non-vegetarians. They used to hunt various animals. Fruits were also used. Many such utensils have been found from the excavation, from which the variety of food and drink items is known in size and type. Mill was used for grinding.

    Clothing :- In relation to the dress of the inhabitants of the Indus Valley, it is said that women used Ghaghra saris and men used dhoti and turban. He himself made clothes by weaving thread by hand.

     Jewelery and Cosmetics:- Both men and women used to wear ornaments. In jewelry, necklace, bracelet, ring, ear flower, armband, collarbone, string, girdle, anklet etc. are particularly noteworthy. Many threaded girdles and necklaces have also been found. Ornaments are made of gold, silver, brass, copper, ivory, bones and clay. The rich used to wear jewelery made of precious metals and jewels. Both men and women were makeup lovers, used metal and ivory combs and mirrors. The hairstyle was of the best type, from the excavations, many small vessels have been found for applying kajal and for coloring the lips.

     Entertainment :- The people of Indus civilization used various arts for entertainment. Animal races used to play chess, the idol of Nritya Gana tells us about the practice of singing and dancing in Harappan culture. Clay and stone dice have been found.

     Technological knowledge :- The people of Indus civilization must have had a lot of technical knowledge after seeing the building construction, huge granary, drainage system, road system, it is estimated that they knew how to make mixed metals, their idols and ornaments were very beautiful.

    Dead deeds: - Even in this period, dead bodies were buried in the ground. Along with the dead bodies, food, weapons, utensils and other useful items were also kept with them like in the Paleolithic period. Large stones were also placed over the graves of the dead, the main purpose of which was to pay respect to the dead. In some places the practice of burning dead bodies had also become prevalent. When the dead body was burnt, its ashes were kept in earthen pots and buried in the ground with respect.

     Medical Science: - The inhabitants of the Indus civilization were familiar with various medicines, and used deer, reindeer horns, neem leaves and Shilajit as medicines, it is noteworthy that in the Indus civilization, examples of skull surgery are also Kali, Banga. and is obtained from Lothal. Sea fen (foam) was also used as medicine.

     economic life

     Agriculture and Animal Husbandry :- Indus region was very fertile in the past as compared to today. One of the reasons for the fertility of the Indus was the annual floods from the Indus river. A brick wall erected to protect the village indicates that floods occurred every year. The people here used to sow the seeds in the flood plains in the month of November after the flood had subsided and harvested wheat and barley in the month of April before the arrival of the next flood. No shovel or fall has been found here, but the plows (Halrekha) of the Pre-Harappan civilization of Kalibangan have been found, it is known that plows were plowed in Rajasthan during this period.

    The people of Indus Valley Civilization used to grow grains like wheat, barley, rye, peas, jowar etc. They produced two types of wheat. Barley found in Banawali is of improved quality. Apart from this, they also used to grow sesame and mustard. First cotton was also grown here. In the name of this, the people of Greece started calling this Sindon. Harappa was an agrarian culture, but the people here also did animal husbandry. Bullock-cow, buffalo, goat, sheep and pig were reared. The Harappans had knowledge of elephants and rhinoceros.

     Trade :- The people here used to trade stones, metal scales (bone) etc. among themselves. Evidence of many seals (Mrinmudra), uniform script and standardized measurements and weights have been found in a large area. They were familiar with the wheel and probably used a vehicle similar to today's ace (chariot). They traded with Afghanistan and Iran (Persia). They established a commercial colony in northern Afghanistan which facilitated their trade. Many Harappan seals have been found in Mesopotamia, which suggest that they also had trade links with Mesopotamia. Evidence of trade with Meluha has been found in Mesopotamian inscriptions, as well as mention of two intermediate trade centers - Dalmun and Makan. Dilmun can probably be identified with Bahrain in the Persian Gulf.

     Industries-Businesses:- Many business-businesses were prevalent in the cities here. These people were very skilled in making pottery. Different types of paintings were made on pottery with black paint. The business of making cloth was in advanced stage. It was also exported abroad. The work of the jeweler was also in advanced stage. The work of making beads and amulets was also popular, so far no iron object has been found. Hence it is proved that they did not have knowledge of iron.

    development of art

     Sculpture or Statues :- The people of Harappan civilization used to make beautiful metal statues. The most beautiful specimen of them is the statue of a dancer made of bronze. In the excavations, a half-statue of a bearded man made of slacker has been found. From his left shoulder to the bottom of his right hand, there is an ornate scarf and a sarabandha on his forehead. The statues of two men made of stone are examples of miniature Harappan sculpture.

     Painting :- It is known from the paintings made on many utensils and seals that the people of Indus Valley were very skilled in painting. Bulls and buffaloes have been painted in the most artistic way on seals. Pictures of trees have also been made.

     Mudra art: - Various types of currencies have been found in the excavations of Harappa, these coins are of square shape, on which pictures of animals are made on one side and articles are on the other side. About 3600 seals of these ivory and clay have been found.

     Metal Art :- In the arts of Indus civilization metal art in which special gold art is mentioned. The work of casting, casting, carving etc. was done by the sonars here. The artefacts of the Indus period are so unique and beautiful that even today's goldsmith can be proud of such workmanship.

     Pot making art: - Many copper and clay pots have been found in the excavation, which are very beautiful and of high quality, it has been found in square, rectangular, circular. They were used to fill water and store grains.

     Copper pot making art: - Many copper vessels have been found in the excavation, it is in square, rectangular in which there is a painting.

    Textile making art: - If the Indus civilization has been excavated, the pillows have been found, from which the residents here were also skilled in the work of spinning yarn.

     Dance and Music: There is also evidence that the Indus people were familiar with dance and music. Earlier we have mentioned the statue of a dancer made of bronze. It is clear from this that dance art was promoted in the Indus region. The gesture of this idol is as heart-wrenching as it is seen in the sculptures of the historical era. Some such pictures have been found on the utensils which are similar to the drum and tabla. It is estimated that the Indus people also knew how to make musical instruments.

     Script or Writing Art :- Like the inhabitants of Mesopotamia, the Harappans also developed the art of writing. Although the first samples of this script were received in 1853, scholars have not been able to decipher its meaning so far. Some scholars have also used computer to read it but they are also unsuccessful. Efforts to establish a relation of this script with the languages ​​of Dravidian, Sanskrit or Sumer have also not yielded any satisfactory result. The Harappan script is considered to be a pictographic script. In this script, every letter in the form of a picture is a symbol of some sound, thought or object. About 400 such pictographs have come to be seen. This script has not yet been read, so we cannot say much about the literature, ideas or governance of the Harappan culture. Reading and writing were probably limited to one class.

    religious life

     The Harappans believed in a divine power

     Worship of Shiva: - Mackay received a seal from Mohenjodaro, on which the marshal considered the deity inscribed as the original form of Shiva, even today Shiva has the most importance in our religion. Worship of Mother Goddess:- Worship of Mother Goddess is known from getting maximum number of female terracotta idols from the Indus culture. The people here used to worship the Mother Goddess as the fertility of the earth (Based on Harappan seals)

     Idol worship: - Idol worship started from the time of Harappan culture, some linga figures have been received from Harappa, similarly there are smoke marks in some south idols, on the basis of which idol worship is estimated here. The beginning of idol worship is indicated in the later Vedic age after the Harappan period, although idol worship was prevalent from the Gupta period when the construction of temples for the first time started.

     Jal Puja :- On the basis of bathhouse received from Mohenjodaro.

     Surya Puja :- On the basis of Swastik symbols obtained from Mohenjodaro. The Swastika symbol is associated with Sun worship.

     Nag Puja: Based on the marking of serpents on the seals.

     Tree worship: - On the seals many types of trees like Peepal, Banana, Neem etc. are found. This shows their religious importance.

    सिंधु घाटी की सभ्यात: sindus Valley Civilization: || क्या आप सिंधू घाटी की सभ्यता के बारे में जानते है?

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    प्रागैतिहासिक काल

    भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है।

    प्रागैतिहासिक शब्द प्राग+इतिहास से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है- इतिहास से पूर्व का युग ।

    प्रागैतिहासिक (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है।इस काल में मानव-इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई जिनमें हिमयुग, मानवों का अफ़्रीका से निकलकर अन्य स्थानों में विस्तार, आग पर स्वामित्व पाना, कृषि का आविष्कार, कुत्तों व अन्य जानवरों का पालतू बनना इत्यादि शामिल हैं। ऐसी चीज़ों के केवल चिह्न ही मिलते हैं, जैसे कि पत्थरों के प्राचीन औज़ार, पुराने मानव पड़ावों का अवशेष और गुफ़ाओं की कला।

    यह वो समय है जब हम पशु से मनुष्य के रूप में विकसित हुए है जब मनुष्य ने खाद्य उत्पादन आरम्भ नही किया था ।

    प्रागैतिहासिक भारत को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है :-

  • पूर्व पाषाण काल
  • मध्य पाषाण काल
  • उत्तर पाषाण काल
  • धातु पाषाण काल
  • पूर्व पाषाण काल

    पूर्व पाषाण कालीन सभ्यता के केन्द्र दक्षिण भारत में मदुरा त्रिचनापल्ली, मैसूर, तंजौर आदि क्षेत्रों में इस सभ्यता के अवशेष मिले है । इस समय मनुष्य का प्रारंभिक समय था, इस काल में मनुष्य और जानवरों में विशेष अन्तर नहीं था । पूर्व पाषाण कालीन मनुष्य कन्दराओं, गुफाओं, वृक्षो आदि में निवास करता था । पूर्व पाषाण कालीन मनुष्य पत्थरों का प्रयोग अपनी रक्षा के लिये करता था । कुल्हाड़ी और कंकड के औजार सोहन नदी की घाटी में मिले है । सोहन नदी सिंधु नदी की सहायक नदी है। उसके पत्थर के औजार साधारण और खुरदुरे थे । इस युग में मानव शिकार व भोजन एकत्र करने की अवस्था में था । खानाबदोश जीवन बिताता था और उन जगहों की तलाश में रहता था, जहॉं खाना पानी अधिक मात्रा में मिल सके ।

    मध्य पाषाण काल

    मध्य पाषाण काल में पत्थर के औजार बनायें जाने लगे इस काल में कुल्हाडियों के अलावा, सुतारी, खुरचनी और बाण आदि मिले है । इस काल में मिट्टी का प्रयोग होने लगा था । पत्थरों में गोमेद, जेस्पर आदि का प्रयोग होता था । इस काल के अवशेष सोहन नदी, नर्मदा नदी और तुगमद्रा नदी के किनारे पाये गये ।

    उत्तर पाषाण काल

    इस काल में भीमानव पाषाणो का ही प्रयोग करता था, किन्तु इस काल में निर्मित हथियार पहले की अपेक्षा उच्च कोटि के थे । पाषाण काल का समय मानव जीवन के लिये विशेष अनुकूल था । इस काल के मनुष्य अधिक सभ्य थे ।उन्होंने पत्थर व मिट्टी को जोड़कर दीवारे व पेड़ की शाखाओं व जानवरों की हड्डियों से छतों का निर्माण किया एवं समूहों में रहना प्रारम्भ कर दिया । मिट्टी के बर्तन, वस्त्र बुनना आदि प्रारम्भ कर दिया । हथियार नुकीले सुन्दर हो गये। इस काल के औजार सेल्ट, कुल्हाड़ियाँ, छेनियाँ, गदायें, मूसला, आरियाँ इत्यादि थे । उत्तर पाषाण कालीन लोग पत्थर को रगड़कर आग जलाने व भोजन पकाने की कला जानते थे । इस काल में धार्मिक भावनायें भी जागृत हुर्इ । प्राकृतिक पूजा वन, नदी आदि की करते थे ।

    धातु युग

    धातु यगु मानव सभ्यता के विकास का द्वितीय चरण था । इस युग में मनुष्य ने धातु के औजार तथा विभिन्न वस्तुयें बनाना सीख लिया था । इस युग में सोने का पता लगा लिया था एवं उसका प्रयोग जेवर के लिये किया जाने लगा । धातु की खोज के साथ ही मानव की क्षमताओं में भी वृद्धि हुर्इ । हथियार अधिक उच्च कोटि के बनने लग गये । धातुकालीन हथियारों में चित्र बनने लगे। इस युग में मानव ने धातु युग को तीन भागों में बांटा गया:-

  • ताम्र युग
  • कांस्य युग
  • लौह युग
  • ताम्र युग:

    इस युग में ताबें का प्रयोग प्रारम्भ हुआ । पाषाण की अपेक्षा यह अधिक सुदृढ़ और सुविधाजनक था । इस धातु से कुल्हाड़ी, भाले, तलवार तथा आवश्यकता की सभी वस्तुयें तॉबे से बनार्इ जाने लगी । कृषि कार्य इन्ही औजारों से किया जाने लगा ।

    कांस्य युग:

    इस यगु में मानव ने तांबा और टिन मिलाकर एक नवीन धातु कांसा बनाया जो अत्यंत कठोर था । कांसे के औजार उत्तरी भारत में प्राप्त हुये इन औजार में चित्र भी थे । अनाज उपजाने व कुम्हार के चाक पर बर्तन बनाने की कला सीख ली थी । वह मातृ देवी और नर देवताओं की पूजा करता था । वह मृतकों को दफनाता था और धार्मिक अनुष्ठानों में विश्वास करता था । ताम्र पाषाण काल के लोग गांवों में रहते थे ।

    लौह युग:

    दक्षिण भारत में उत्तर पाषाण काल के उपरान्त ही लौह काल प्रारम्भ हुआ। लेकिन उत्तरी भारत में ताम्रकाल के उपरान्त लौह काल प्रारम्भ हुआ । इस काल में लोहे के अस्त्र शस्त्रों का निर्माण किया जाने लगा । ताम्र पाषाण काल में पत्थर और तांबे के औजार बनाये जाते थे ।


    prehistoric times


     The history of India begins with prehistoric times.

     The word prehistoric is made up of Prag + itihasa which literally means - the era before history.

     Prehistory is called that period of history when humans were in existence but when writing was not invented, there is no written description of that period. Many important events of human history took place in this period, including ice age, humans Expansion from Africa to other places, gaining ownership of fire, the invention of agriculture, the domestication of dogs and other animals, etc. Only traces of such things are found, such as ancient stone tools, the remains of old human settlements, and cave art.

     This is the time when we have evolved from animal to human when man did not start food production.

     Prehistoric India has been divided into the following parts:-

     early stone age

    1.Mesolithic
    2. Late Paleolithic
    3. Metal Paleolithic
    4. early stone age

     Remains of this civilization have been found in areas like Madura, Trichanapalli, Mysore, Tanjore etc. At this time there was the early time of man, in this period there was no special difference between man and animals. Early stone age man used to live in caves, caves, trees etc. Early stone age man used to use stones to protect himself. The tools of ax and pebbles have been found in the valley of Sohan river. The Sohan River is a tributary of the Indus River. His stone tools were simple and rough. In this age man was in a state of hunting and gathering food. The nomadic life was lived in search of places where food and water could be found in abundance.

    Mesolithic

     Stone tools started being made in the Mesolithic period, in addition to axes, carpenters, scrapers and arrows etc. have been found. The use of clay was started during this period. Onyx, Jasper etc. were used in stones. The remains of this period were found on the banks of Sohan river, Narmada river and Tugamdra river.

     Late Paleolithic

     Even in this period, man used to use only stones, but the weapons manufactured in this period were of higher quality than before. The time of the Stone Age was particularly favorable for human life. The humans of this period were more civilized. They built walls and roofs from tree branches and animal bones by adding stone and soil and started living in groups. Weaving pottery, clothes etc. started. Weapon sharps became beautiful. The tools of this period were celts, axes, chisels, maces, hammers, saws, etc. The people of the Late Stone Age knew the art of burning fire and cooking food by rubbing stones. Religious sentiments were also awakened during this period. Natural worship was done to the forest, river etc.

     metal age

     The Metal Age was the second stage of the development of human civilization. In this age man had learned to make metal tools and various things. In this era, gold was discovered and it was used for jewelry. With the discovery of metal, human capabilities also increased. Weapons started becoming more high quality. Paintings began to be made in metallic weapons. In this era, humans divided the metal age into three parts:-

    1. copper age
    2. bronze Age
    3. iron Age

    Copper Age:

    The use of copper started in this era. It was stronger and more convenient than stone. From this metal axes, spears, swords and all the necessary things were made from copper. Agricultural work was started with these tools.

     bronze Age:

     In this era, humans mixed copper and tin to make a new metal bronze which was extremely hard. Bronze tools found in northern India also had pictures in these tools. He had learned the art of growing grain and making utensils on a potter's wheel. He worshiped the mother goddess and male deities. He buried the dead and believed in religious rituals. The people of Chalcolithic period lived in villages.

     iron Age:

     The Iron Age started in South India only after the Late Stone Age. But after the Copper Age in northern India, the Iron Age started. During this period iron weapons were being manufactured. Stone and copper tools were made in the Chalcolithic period.


    मनुष्य से जुड़े ये बाते आपको जरूर जाननी चाहिए || प्रागैतिहासिक काल ( prehistoric times )

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    प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के साधन

    प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी के साधनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- साहित्यिक साधन और पुरातात्विक साधन, जो देशी और विदेशी दोनों हैं। साहित्यिक साधन दो प्रकार के हैं- धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य। धार्मिक साहित्य भी दो प्रकार के हैं - ब्राह्मण ग्रन्थ और अब्राह्मण ग्रन्थ। ब्राह्मण ग्रन्थ दो प्रकार के हैं - श्रुति जिसमें वेद, ब्राह्मण, उपनिषद इत्यादि आते हैं और स्मृति जिसके अन्तर्गत रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतियाँ आदि आती हैं। लौकिक साहित्य भी चार प्रकार के हैं - ऐतिहासिक साहित्य, विदेशी विवरण, जीवनी और कल्पना प्रधान तथा गल्प साहित्य। पुरातात्विक सामग्रियों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है - अभिलेख, मुद्राएं तथा भग्नावशेष स्मारक।

    साहित्यिक साधन

  • 1. धार्मिक साहित्य
  • 2. ब्राह्मण ग्रंथ
  • 3. श्रुति (वेद ब्राह्मण उपनिषद् वेदांग)
  • 4. स्मृति (रामायण महाभारत पुराण स्मृतियाँ)
  • 5. अब्राह्मण ग्रंथ
  • 6. लौकिक साहित्य
  • 7. ऐतिहासिक
  • 8. विदेशी विवरण
  • 9. जीवनी
  • 10. कल्पना प्रधान तथागल्प साहित्य
  • पुरातात्विक साधन

  • 1अभिलेख
  • 2मुद्राएँ
  • 3भग्नावशेष स्मारक
  • साहित्यिक साधन

    वेद

    ऐसे ग्रन्थों में वेद सर्वाधिक प्राचीन हैं और वे सबसे पहले आते हैं। वेद आर्यों के प्राचीनत ग्रन्थ हैं जो चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से आर्यों के प्रसार; पारस्परिक युद्ध; अनार्यों, दासों, दासों और दस्युओं से उनके निरंतर संघर्ष तथा उनके सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक संगठन की विशिष्ट मात्रा में जानकारी प्राप्त होती है। इसी प्रकार अथर्ववेद से तत्कालीन संस्कृति तथा विधाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।

    ब्राह्मण

    वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं की गद्य टीकाओं को ब्राह्मण कहा जाता है। पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय, शतपथ, पंचविश, तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण हैं। ऐतरेय के अध्ययन से राज्याभिषेक तथा अभिषिक्त नृपतियों के नामों का ज्ञान प्राप्त होता है। शथपथ के एक सौ अध्याय भारत के पश्चिमोत्तर के गान्धार, शाल्य तथा केकय आदि और प्राच्य देश, कुरु, पांचाल, कोशल तथा विदेह के संबंध में ऐतिहासिक कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं। राजा परीक्षित की कथा ब्राह्मणों द्वारा ही अधिक स्पष्ट हो पायी है।

    उपनिषद

    उपनिषदों में ‘बृहदारण्यक’ तथा ‘छान्दोन्य’, सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इन ग्रन्थों से बिम्बिसार के पूर्व के भारत की अवस्था जानी जा सकती है। परीक्षित, उनके पुत्र जनमेजय तथा पश्चातकालीन राजाओं का उल्लेख इन्हीं उपनिषदों में किया गया है। इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था। आर्यों के आध्यात्मिक विकास प्राचीनतम धार्मिक अवस्था और चिन्तन के जीते जागते जीवन्त उदाहरण इन्हीं उपनिषदों में मिलते हैं।

    वेदांग

    युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं की शाखाओं का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं। वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है। वे ये हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्दशास्त्र तथा ज्योतिष। वैदिक शाखाओं के अन्तर्गत ही उनका पृथकृ-पृथक वर्ग स्थापित हुआ और इन्हीं वर्गों के पाठ्य ग्रन्थों के रूप में सूत्रों का निर्माण हुआ। कल्पसूत्रों को चार भागों में विभाजित किया गया-श्रौत सूत्र जिनका संबंध महायज्ञों से था, गृह्य सूत्र जो गृह संस्कारों पर प्रकाश डालते थे, धर्म सूत्र जिनका संबंध धर्म तथा धार्मिक नियमों से था, शुल्व सूत्र जो यज्ञ, हवन-कुण्ठ बेदी, नाम आदि से संबंधित थे। वेदांग से जहाँ एक ओर प्राचीन भारत की धार्मिक अवस्थाओं का ज्ञान प्राप्त होता है, वहाँ दूसरी ओर इसकी सामाजिक अवस्था का भी।

    स्मृतियाँ

    स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है- 'श्रस्तु वेद विज्ञेयों धर्मशास्त्रं तु वैस्मृतिः।' स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ। मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बंधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है। सम्भवतः मनुस्मृति (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- नारद, पराशर, बृहस्पति, कात्यायन, गौतम, संवर्त, हरीत, अंगिरा आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय के भारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है। मेधातिथि, मारुचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।

    महाकाव्य

  • रामायण: रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकि द्वारा पहली एवं दूसरी शताब्दी के दौरान संस्कृत भाषा में की गयी । बाल्मीकि कृत रामायण में मूलतः 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर में 12000 हुए और फिर 24000 हो गये । इसे 'चतुर्विशिति साहस्त्री संहिता' भ्री कहा गया है। बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड एवं उत्तराकाण्ड नामक सात काण्डों में बंटा हुआ है। रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है। रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम भारत से बाहर चीन में किया गया। भूशुण्डि रामायण को 'आदिरामायण' कहा जाता है।
  • महाभारत: महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से बृहद है। इसकी रचना का मूल समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी माना जाता है। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में गुप्त काल में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रास्थानिक एवं स्वर्गारोहण में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
  • पुराण

    प्राचीन आख्यानों से युक्त ग्रंथ को पुराण कहते हैं। सम्भवतः 5वीं से 4थी शताब्दी ई.पू. तक पुराण अस्तित्व में आ चुके थे। ब्रह्म वैवर्त पुराण में पुराणों के पांच लक्षण बताये ये हैं। यह हैं- सर्प, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। कुल पुराणों की संख्या 18 हैं- 1. ब्रह्म पुराण 2. पद्म पुराण 3. विष्णु पुराण 4. वायु पुराण 5. भागवत पुराण 6. नारदीय पुराण, 7. मार्कण्डेय पुराण 8. अग्नि पुराण 9. भविष्य पुराण 10. ब्रह्म वैवर्त पुराण, 11. लिंग पुराण 12. वराह पुराण 13. स्कन्द पुराण 14. वामन पुराण 15. कूर्म पुराण 16. मत्स्य पुराण 17. गरुड़ पुराण और 18. ब्रह्माण्ड पुराण

    बौद्ध साहित्य

    बौद्ध साहित्य को ‘त्रिपिटक‘ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं। वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है। त्रिपिटक हैं- सुत्तपिटक, विनयपिटक और अभिधम्मपिटक।

    जैन साहित्य 

    ऐतिहसिक जानकारी हेतु जैन साहित्य भी बौद्ध साहित्य की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं। अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है। जैन साहित्य, जिसे ‘आगम‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है। आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं। इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।

    विदेशियों के विवरण

  • 1. यूनानी-रोमन लेखक
  • 2. चीनी लेखक
  • 3. अरबी लेखक
  • पुरातत्त्व 

    पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियां चित्रकला आदि आते हैं। इतिहास निमार्ण में सहायक पुरातत्त्व सामग्री में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये अभिलेख अधिकांशतः स्तम्भों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं पात्रों, मूर्तियों, गुहाओं आदि में खुदे हुए मिलते हैं। यद्यपि प्राचीनतम अभिलेख मध्य एशिया के ‘बोगजकोई‘ नाम स्थान से क़रीब 1400 ई.पू. में पाये गये जिनमें अनेक वैदिक देवताओं - इन्द्र, मित्र, वरुण, नासत्य आदि का उल्लेख मिलता है।

    चित्रकला

    चित्रकला से हमें उस समय के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है। अजंता के चित्रों में मानवीय भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रों में ‘माता और शिशु‘ या ‘मरणशील राजकुमारी‘ जैसे चित्रों से गुप्तकाल की कलात्मक पराकाष्ठा का पूर्ण प्रमाण मिलता है। 


    Means of information about ancient Indian history



    The sources of information about the history of ancient India can be divided into two parts - literary resources and archaeological resources, which are both indigenous and foreign. Literary literature is of two types – religious literature and secular literature. There are also two types of religious literature - Brahman texts and non-Brahmin texts. There are two types of Brahman texts - Shruti in which Vedas, Brahmanas, Upanishads etc. come and Smriti under which Ramayana, Mahabharata, Puranas, Smritis etc. There are also four types of secular literature - historical literature, foreign description, biography and fiction and fiction literature. Archaeological materials can be divided into three parts - inscriptions, seals and ruined monuments.

    literary instrument

    1. Religious literature 
    2. Brahman texts 
    3. Shruti (Ved Brahman Upanishad Vedanga) 
    4. Smriti (Ramayana Mahabharata Purana Smritis) 
    5. Abrahamic texts 
    6. Cosmic literature 
    7. Historical . Foreign Description 
    9. Biography 
    10. Imagination based Tath Fiction

    Archaeological Resources 

    1 Records 
    2 Currencies 
    3 Ruins Monuments 

    Literary Resourcesli

    vedas 

    The Vedas are the oldest of such texts and they come first. The Vedas are the oldest texts of the ayas, which are four - the spread of ayans from the Rigveda, Samveda, Yajurveda and Atharvaveda; Interpersonal warfare, their constant struggle with slaves, slaves, slaves and dacoits, and their social, religious and economic organization provide a specific amount of information. Similarly, knowledge of the then culture and genres is obtained from the Atharvaveda.

    Brahman

    The prose commentaries of Vedic hymns and samhitas are called brahmins. Aitareya, Shatapatha, Panchvish, Taitriya etc. are particularly important in the ancient Brahmins. The study of Aitareya gives knowledge of the coronation and the names of the anointed Nripatis. The one hundred chapters of Shathpath present historical stories in relation to the Gandhara, Shalya and Kekaya etc and oriental countries, Kuru, Panchala, Kosala and Videha in the north-west of India. The story of King Pariksisheta became more clear only through the Brahmins.

    Upanishads

    Among the Upanishads, 'Buhadaranyaka' and 'Chandonya' are the most famous. The condition of India before Bimbisara can be known from these texts. Parikshit, his son Janamejaya and later kings are mentioned in these Upanishads. It is clear from these Upanishads that the philosophy of the Ayans was the best and far ahead of the philosophy of other civilized countries of the world. Spiritual development of Ayans, living examples of the oldest religious stage and thinking are found in these Upanishads.

    Vedang

    In the epoch, for Vedic study, branches of six disciplines were born, which are called 'Vedanga'. Vedanga literally means part of the Vedas, however, due to the masculine nature of this literature, it is counted separately from the Shruti literature. They are education, kalpa, grammar, nirukta, verses and astrology. Within the Vedic branches, their separate class was established and the sources were created in the form of texts of these classes. The Kalpasutras were divided into four parts - Shraut Sutras which were related to Mahayagyas, Grihya Sutras which threw light on the rituals of the house, Dharma Sutras which were related to religion and religious rules, Shulva Sutras which deal with Yagya, Havan- Kuntha Bedi, Naam etc. were related to. While on the one hand knowledge of the religious conditions of ancient India is obtained from Vedanga, on the other hand also its social condition.

    memories

    Smritis are also called 'Dharma Shastra' - 'Srastu Veda Vijye Dharmashastra Tu Vaismritih'. Smritis emerged after the Sus. Information about innumerable laws and prohibitions about many activities related to the whole life of human beings comes from these memories. Probably Manusmriti (about 200 BC to 100 AD) and Yajnavalkya Smriti are the oldest. Other important smritikars of that time were - Narada, Parashara, Brihaspati, Katyayana, Gautam, Samvat, Harit, Angira etc., whose time was probably from 100 AD to 600 AD. Manusmriti gives political, social and religious information about India of that time. Narada Smriti gives information about the Gupta dynasty. Commentators like Medhatithi, Maruchi, Kulluk Bhatta, Govindraj etc. have written commentaries on 'Manusmriti', while Vishwaroop, Aparak, Vigyaneshwar etc. have written commentaries on 'Yajnavalkya Smriti'.

    epic

    • Ramayana: The Ramayana was composed by Maharishi Valmiki in the Sanskrit language during the 1st and 2nd centuries AD. There were originally 6000 lokas in Valmiki's Ramayana, which later became 12000 and then became 24000. It has also been called 'Chaturvishiti Sahastri Samhita'. The Ramayana composed by Valmiki is divided into seven kandas namely Balkand, Ayodhyakand, Aranyakand, Kishkindhakand, Sunderkand, Yudhkand and Uttarakand. The political, social and religious situation of that time is known through Ramayana. The texts based on the Ramayana were first translated outside India in China. Bhusundi Ramayana is called 'Adiramayana'.

    • Mahabharata: The Mahabharata, composed by Maharishi Vyasa, is larger than the epic Ramayana. The original time of its creation is considered to be the fourth century BC. There were originally 8800 lokas in the Mahabharata and its name was 'Jayasamhita' (Victory texts). Later, after the number of verses was 24000, this Vedic mass was called 'Bharat' due to being the story of the descendants of Bharata. Later, when the number of verses increased to one lakh during the Gupta period, it was called 'Shatasahastri Samhita' or 'Mahabharata'. The earliest mention of Mahabharata is found in 'Ashvalaya Grihasutra'. At present there is a compilation of about one lakh verses in this epic. The Mahabharata epic is divided into 18 Parva-Adi, Sabha, Van, Virat, Udyog, Bhishma, Drona, Karna, Shalya, Sauptik, Stree, Shanti, Discipline, Ashwamedha, Ashramavasi, Mausal, Mahaprasthanik and Swargarohan. The name 'Harivansh' is an appendix in the Mahabharata. This epic gives knowledge of the political, social and religious situation of the time.

    Puranas 

    The text containing ancient legends is called Purana. Probably 5th to 4th century BC. By then the Puranas had come into existence. In the Brahma Vaivarta Purana, these are the five characteristics of the Puranas. These are – Sarpa, Pratisarga, Vansh, Manvantara and Vanshnucharit. The total number of Puranas are 18- 1. Brahma Purana 2. Padma Purana 3. Vishnu Purana 4. Vayu Purana 5. Bhagavata Purana 6. Nardiya Purana, 7. Markandeya Purana 8. Agni Purana 9. Bhavishya Purana 10. Brahma Vaivata Purana, 11. Linga Purana 12. Varaha Purana 13. Skanda Purana 14. Vamana Purana 15. Kurma Purana 16. Matsya Purana 17. Garuda Purana and 18. Brahmanda Purana

    Buddhist literature

    Buddhist literature is called Tripitaka. The Tripitakas (Sanskrit Tripitakas) are probably the most ancient scriptures, compiled in various Buddhist councils organized after the parinirvana of Mahatma Buddha. Wular and Reese Davids have given the literal meaning of 'pitaka' as basket. The Tripitakas are the Sutta Pitaka, the Vinaya Pitaka and the Abhidhamma Pitaka.

    Jain literature

    Jain literature is also as important as Buddhist literature for historical information. The Jain literature available so far is found in Prakrit and Sanskrit languages. Jain literature, which is called 'Agam', is said to number 12 of them. Later on their 'Appangas' were also written. Along with the Agamas, the Jain texts have 10 verses, 6 verse sutras, one Nandi sutra, one Anuyogadwara and four Moola sutras. These Agama texts were probably composed after the death of Mahavir Swami by the masters of the Shvetambara sect.

    Description of Foreigners 

    1. Greco-Roman Writers 
    2. Chinese Writers 
    3. Arabic Writers

    Archaeological evidence mainly includes inscriptions, coins, monuments, buildings, sculptures, paintings etc. Records have an important place in the supporting archeological material in the making of history. These inscriptions are mostly found carved in pillars, rocks, copper plates, currency vessels, idols, cavities etc. Although the earliest records date from the Bogjakoi name place in Central Asia, around 1400 BC. In which many Vedic deities - Indra, Mitra, Varuna, Nasatya etc. are mentioned.

    archeology

    Archaeological evidence mainly includes inscriptions, coins, monuments, buildings, sculptures, paintings etc. Records have an important place in the supporting archeological material in the making of history. These inscriptions are mostly found carved in pillars, rocks, copper plates, currency vessels, idols, cavities etc. Although the earliest records date from the name place 'Bogjakoi' in Central Asia, around 1400 BC. In which many Vedic deities - Ind, Mitra, Varuna, Nasatya etc. are mentioned.

    drawing 

    Painting gives us information about the life of that time. Beautiful expression of human emotions is found in the paintings of Ajanta. Paintings such as 'Mother and Child' or 'Death Princess' give full evidence of the artistic culmination of the Gupta period.

    Indian ancient history information tools || भारतीय प्राचीन इतिहास की जानकारी के साधन

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    दिल्ली की सल्तनत   ( History of Delhi )

    भारत के इतिहास में 1206 ए.डी. और 1526 ए. डी. के बीच की अवधि दिल्ली का सल्तनत कार्यकाल कही जाती है। इस अवधि के दौरान 300 वर्षों से अधिक समय में दिल्ली पर पांच राजवंशों ने शासन किया। ये थे गुलाम राजवंश (1206-90), रखिलजी राजवंश (1290-1320), तुगलक राजवंश (1320-1413), सायीद राजवंश (1414-51), और लोदी राजवंश (1451-1526)। गुलाम राजवेंश : इस्लाम में समानता की संकल्पना और मुस्लिम परम्पराएं दक्षिण एशिया के इतिहास में अपने चरम बिन्दु पर पहुंच गई, जब गुलामों ने सुल्तान का दर्जा हासिल किया। गुलाम राजवंश ने लगभग 84 वर्षों तक इस उप महाद्वीप पर शासन किया। यह प्रथम मुस्लिम राजवंश था जिसने भारत पर शासन किया। मोहम्मद गरी का एक गुलाम कुतुब उद दीन ऐबक अपने मालिक की मृत्यु के बाद शासक बना और गुलाम राजवंश की स्थापना की। वह एक महान निेर्माता था जिसने दिल्ली में कुतुब मीनार के नाम से विख्यात आश्चर्यजनक 238 फीट ऊंचे पत्थर के स्तंभ का निर्माण कराया। 


    गुलाम राजवंश का अगला महत्वपूर्ण राजा शम्स उद दीन इलतुतमश था, जो कुतुब उद दीन ऐबक का गुलाम था। इलतुतमश ने 1211 से 1236 के बीच लगभग 26 वर्ष तक राज किया और वह मजबूत आधार पर दिल्ली की सल्तनत स्थापित करने के लिए उत्तरदायी था। इलतुतमश की सक्षम बेटी, रजिया बेगम अपनी और अंतिम मुस्लिम महिला थी जिसने दिल्ली के तख्त पर राज किया। वह बहादुरी से लड़ी किन्तु अंत में पराजित होने पर उसे मार डाला गया। अंत में इलतुतमश के सबसे छोटे बेटे नसीर उद दीन मेहमूद को 1245 में सुल्तान बनाया गया। जबकि मेहमूद ने लगभग 20 वर्ष तक भारत पर शासन किया। किन्तु अपने पूरे कार्यकाल में उसकी मुख्य शक्ति उसके प्रधानमंत्री बलबन के हाथों में रही। मेहमूद की मौत होने पर बलबन ने सिंहासन पर कब्ज़ा किया और दिल्ली पर राज किया। वर्ष 1266 से 1287 तक बलबन ने अपने कार्यकाल में साम्राज्य का प्रशासनिक ढांचा सुगठित किया तथा इलतुतमश छद्वारा शुरू किए गए का्यों को पूरा किया। 
    खिलजी राजवंश : बलवन की मौत के बाद सल्तनत कमजोर हो गई और यहां कई बगावरतें हुई। यही वह समय था जब राजाओं ने जलाल उद दीन खिलजी को राजगद्दी पर बिठाया। इससे खिलजी राजवंश की स्थापना आरंभ हुई। इस राजवंश का राजकाज 1290 ए.डी. में शुरू हुआ। अला उद दीन खिलजी जो जलाल उद दीन खिलजी का भतीजा था, ने षड़यंत्र किया और सुल्तान जलाल उद दीन को मार कर 1296 में स्वयं सुल्तान बन बैठा। अला उद दीन खिलजी प्रथ्रम मुस्लिम शासक था जिसके राज्य ने पूरे भारत का लगभग सारा हिस्सा दक्षिण के सिरे तक शामिल था। उसने कई लड़ाइयां लड़ी, गुजरात, रणथम्भौर, चित्तौड़, मलवा और दक्षिण पर विजय पाई। उसके 20 वर्र्ष के शासन काल में कई बार मोगलो ने देश पर आक्रमण किया किन्तु उन्हें सफलतापूर्वक पीछे खदेड़ दिया गया। इन आक्रमणों से अला उद दीन खिलजी ने स्वयं को तैयार रखने का सबक लिया और अपनी सशस्त्र सेनाओं को संपुष्ट तथा संगठित किया। वर्ष 1316 ए.डी. में अला उद दीन की मौत हो गई और उसकी मौत के साथ खिलजी राजवंश समाप्त हो गया। 
    तुगलक राजवंश : गयासुद्दीन तुगलक, जो अला उद दीन खिलजी के कार्यकाल में पंजाब का राज्यपाल था, 1320 ए.डी. में सिंहासन पर बैठा और तुगलक राजवंश की स्थापना की। उसने वारंगल पर विजय पाई और बंगाल में बगावत की। मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने पिता का स्थान लिया और अपने राज्य को भारत से आगे मध्य एशिया तक आगे बढ़ाया। मंगोल ने तुगलक के शासन काल में भारत पर आक्रमण किया और उन्हें भी इस बार हराया गया। मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी को दक्षिण में सबसे पहले दिल्ली से हटाकर देवगिरी में स्थापित किया। जबकि इसे दो वर्ष में वापस लाया गया। उसने एक बड़े साम्राज्य को विरासत में पाया था किन्तु वह कई प्रांतों को अपने नियंत्रण में नहीं रख सका, विशेष रूप से दक्षिण और बंगाल को। उसकी मौत 1351 ए. डी. में हुई और उसके चचेरे भाई फिरोज़ तुगलक ने उसका स्थान लिया। 

    फिरोज 'तुगलक ने साम्राज्य की सीमाएं आगे बढ़ाने में बहुत अधिक योगदान नहीं दिया, जो उसे विरासत में मिली थी। उसने अपनी शक्ति का अधिकांश भाग लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में लगाया। वर्ष 1338 ने उसकी मौत के बाद तुगलक राजवंश लगभग समाप्त हो गया। यद्यपि तुगलक शासन 1412 तक चलता रहा फिर भी 1398 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण को तुगलक साम्राज्य का अंत कहा जा सकता है।

    तैमूर का आक्रमण :

    तुगलक राजवंश के अंतिम राजा के कार्याकाल के दौरान शक्तिशाली राजा तैमूर या टेमरलेन ने 1398 ए.डी. में भारत पर आक्रमण किया। उसने सिंधु नदी को पार किया और मुल्तान पर कब्ज़ा किया तथा बहुत अधिक प्रतिरोध का सामना न करते हुए दिल्ली तक चला आया।

    इसके बाद खिज़ार खान द्वारा सायीद राजवंश की स्थापना की गई। सायीद ने लगभग 1414 ए.डी. से 1450 ए.डी. तक शासन किया। खिज़ार खान ने लगभग 37 वर्ष तक राज्य किया। सायीद राजवंश में अंतिम मोहम्मद बिन फरीद थे। उनके कार्यकाल में भ्रम और बगावत की स्थिति बनी हुई । यह साम्राज्य उनकी मृत्यु के बाद 1451 ए.डी. में समाप्त हो गया।

    लोदी राजवंश

    बुहालुल खान लोदी (1451-1489 ए. डी.) वे लोदी राजवंश के प्रथम राजा और संस्थापक थे। दिल्ली की सलतनत को उनकी पुरानी भव्यता में वापस लाने के लिए विचार से उन्होंने जौनपुर के शक्तिशाली राजवंश के साथ अनेक क्षेत्रों पर विजय पाई। बुहलुल खान ने ग्वालियर, जौनपुर औरउत्तर प्रदेश में अपना क्षेत्र विस्तारित किया।

    सिकंदर खान लोदी (1489-1517 ए. डी.) बुहलुल खान की मृत्यु के बाद उनके दूसरे पुत्र निज़ाम शाह राजा घोषित किए गए और 1489 में उन्हें सुल्तान सिकंदर शाह का खिताब दिया गया। उन्होंने अपने राज्य को मजबूत बनाने के सभी प्रयास किए और अपना राज्य पंजाब से बिहार तक विस्तारित किया। वे बहुत अच्छे प्रशासक और कलाओं तथा लिपि के संरक्षक थे। उनकी मृत्यु 1517 ए.डी. में हुई। 

    इब्राहिम खान लोदी (1489-1517 ए. डी.) सिकंदर की मृत्यु के बाद उनके पुत्र इब्राहिम को गद्दी पर बिठाया गया। इब्राहिम लोदी एक सक्षम शासक सिद्ध नहीं हुए। वे राजाओं के साथ अधिक से अधिक सख्त होते गए। वे उनका अपमान करते थे और इस प्रकार इन अपमानों का बदला लेने के लिए दौलतखान लोदी, लाहौर के राज्यपाल और सुल्तान इब्राहिम लोदी के एक चाचा, अलाम खान ने काबुल के शासक, बाबर को भारत पर कब्ज़ा करने का आमंत्रण दिया। इब्राहिम लोदी को बाबर की सेना ने 1526 ए. डी. में पानीपत के युद्ध में मार गिराया। इस प्रकार दिल्ली की सल्तनत अंतत: समाप्त हो गई और भारत में मुगल शासन का मार्ग प्रशस्त हुआ। 


    Sultanate of Delhi ( History of Delhi )


     1206 AD in the history of India and 1526 A. The period between d. is called the Sultanate tenure of Delhi. Delhi was ruled by five dynasties during this period for over 300 years. These were the Ghulam dynasty (1206–90), the Rakhilji dynasty (1290–1320), the Tughlaq dynasty (1320–1413), the Sayyid dynasty (1414–51), and the Lodi dynasty (1451–1526). Ghulam Rajvensh: The concept of equality in Islam and Muslim traditions reached its climax in the history of South Asia, when the slaves attained the status of Sultan. The Slave Dynasty ruled this sub-continent for about 84 years. It was the first Muslim dynasty that ruled India. Qutb-ud-din Aibak, a slave of Muhammad Ghari, became the ruler after the death of his master and established the Ghulam dynasty. He was a great builder who built the astonishing 238 feet high stone pillar known as Qutub Minar in Delhi.

    The next important king of the slave dynasty was Shams ud din Iltutmash, who was a slave of Qutb ud din Aibak.  Iltutmash ruled for about 26 years between 1211 and 1236 and was responsible for establishing the Sultanate of Delhi on a strong foundation.  Iltutmash's able daughter, Razia Begum was her and the last Muslim woman to rule the throne of Delhi.  She fought valiantly but was eventually defeated and put to death.  Finally Iltutmash's youngest son Nasir ud din Mehmud was made Sultan in 1245.  Whereas Mehmud ruled India for about 20 years.  But throughout his tenure, his main power remained in the hands of his Prime Minister Balban.  On the death of Mehmud, Balban captured the throne and ruled Delhi.  During his tenure from 1266 to 1287, Balban organized the administrative structure of the empire and completed the works started by Iltutmash Chhad.


    Khilji Dynasty: After the death of Balvan, the Sultanate became weak and there were many rebellions here. This was the time when the kings placed Jalal-ud-din Khilji on the throne. This marked the beginning of the establishment of the Khilji dynasty. The reign of this dynasty dates back to 1290 AD. originated in. Ala-ud-din Khilji, who was the nephew of Jalal-ud-din Khilji, conspired and killed Sultan Jalal-ud-din and became the Sultan himself in 1296. Ala-ud-din Khilji was the first Muslim ruler whose kingdom covered almost all of India up to the tip of the south. He fought many battles, conquered Gujarat, Ranthambore, Chittor, Malwa and the South. During his 20 years of rule, the Moguls attacked the country many times but they were successfully repulsed. From these attacks, Ala-ud-din Khilji learned to keep himself ready and strengthened and organized his armed forces. Year 1316 A.D. Ala-ud-Din died in AD and with his death the Khilji dynasty came to an end.

    Tughlaq Dynasty: Ghiyasuddin Tughlaq, who was the governor of Punjab during the tenure of Ala-ud-din Khilji, in 1320 A.D. He ascended the throne and founded the Tughlaq dynasty. He conquered Warangal and revolted in Bengal. Muhammad bin Tughlaq succeeded his father and extended his kingdom beyond India to Central Asia. The Mongols invaded India during the reign of Tughlaq and they were also defeated this time. Muhammad bin Tughlaq shifted his capital from Delhi first to the south and established it at Devagiri. Whereas it was brought back in two years. He had inherited a large empire but he could not keep many provinces under his control, especially the South and Bengal. He died in 1351 A.D. D. and was replaced by her cousin Firoz Tughlaq.


    Firoz' Tughlaq did not contribute much in advancing the boundaries of the empire, which he had inherited. He used most of his power to improve the lives of the people. The Tughlaq dynasty almost came to an end after his death in the year 1338. Although the Tughlaq rule lasted till 1412, the invasion of Delhi by Timur in 1398 can be said to be the end of the Tughlaq Empire.

    Timur's Invasion:

     The mighty king Timur or Tamerlane, during the reign of the last king of the Tughlaq dynasty, ruled in 1398 A.D. I invaded India. He crossed the Indus river and captured Multan and, not facing much resistance, went up to Delhi.

     After this the Sayyid dynasty was established by Khizhar Khan. Sayyid around 1414 A.D. to 1450 A.D. Ruled until. Khizar Khan ruled for about 37 years. The last of the Sayyid dynasty was Mohammed bin Farid. There was confusion and rebellion during his tenure. This empire was established after his death in 1451 A.D. in over.

    Lodi Dynasty:

     Buhalul Khan Lodi (1451–1489 AD) was the first king and founder of the Lodi dynasty. He conquered many territories with the mighty dynasty of Jaunpur with a view to bring the Delhi Sultanate back to its former grandeur. Buhlul Khan expanded his territory in Gwalior, Jaunpur and Uttar Pradesh.

     Sikandar Khan Lodi (1489–1517 A.D.) After the death of Buhlul Khan, his second son Nizam Shah was proclaimed king and in 1489 he was given the title of Sultan Sikandar Shah. He made all efforts to strengthen his kingdom and extended his kingdom from Punjab to Bihar. He was a very good administrator and patron of arts and scripts. He died in 1517 A.D. happened in.
    Ibrahim Khan Lodi (1489-1517 A.D.) After the death of Alexander, his son Ibrahim was placed on the throne. Ibrahim Lodi did not prove to be a capable ruler. They became more and more strict with the kings. They insulted him and thus to avenge these insults, Daulat Khan Lodi, the governor of Lahore and an uncle of Sultan Ibrahim Lodi, Alam Khan invited Babur, the ruler of Kabul, to occupy India. Babur's army killed Ibrahim Lodi in 1526 A.D. Killed in the battle of Panipat in D. Thus the Sultanate of Delhi finally came to an end, paving the way for Mughal rule in India.

    History of indian capital Delhi in English || भारत की राजधानी दिल्ली की सल्तनत का इतिहास हिंदी में

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